जल संसाधन (JAC Class 12 Geography Notes): जल संसाधन हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं। यह न केवल मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, बल्कि कृषि, उद्योग, और पारिस्थितिकी के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जल का सही प्रबंधन और संरक्षण आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इस अध्याय में, हम जल संसाधनों, उनके वर्गीकरण, उपयोग, और संबंधित समस्याओं के साथ-साथ जल संरक्षण के उपायों पर चर्चा करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 |
Subject | Geography (भूगोल) Part – 2 |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | जल संसाधन |
Category | कक्षा 12 Geography नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
जल संसाधन की परिभाषा
जल संसाधन से तात्पर्य उन सभी जल स्रोतों से है, जो मानव जीवन, कृषि, उद्योग, और पारिस्थितिकी के लिए उपयोग किए जाते हैं। जल की कुल मात्रा पृथ्वी पर बहुत अधिक है, लेकिन इसका अधिकांश भाग (लगभग 97%) समुद्र के रूप में है, जो कि खारा होता है। अलवणीय जल, जो कि पीने और कृषि के लिए उपयोगी है, केवल 3% है।
जल की गुणवत्ता
जल की गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता से है, जो बाहरी अवांछनीय पदार्थों से मुक्त होता है। जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है:
- औद्योगिक प्रदूषण
- घरेलू अपशिष्ट
- कृषि के लिए उपयोग होने वाले रासायनिक पदार्थ
भारत के जल संसाधन
भारत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु विविधता के कारण, यहाँ जल संसाधनों की स्थिति विशेष है। भारत में विश्व के कुल क्षेत्रफल का लगभग 2.45% है, जबकि जनसंख्या लगभग 16% है। भारत के पास जल संसाधनों का 4% हिस्सा है।
वार्षिक वर्षा
भारत में वार्षिक वर्षा लगभग 4000 घन किमी होती है। सतह और भूजल स्रोतों से 1869 घन किमी पानी प्राप्त होता है, लेकिन इनमें से केवल 60% (1122 घन किमी) ही उपयोगी है। यह जल की असमान वितरण के कारण है।
जल संसाधनों का वर्गीकरण
जल संसाधनों को मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
1. धरातलीय जल संसाधन
धरातलीय जल के प्रमुख स्रोत हैं:
- नदियाँ: भारत में 1.6 किमी से अधिक लंबाई वाली 10360 नदियाँ हैं।
- झीलें: झीलें जल भंडारण का महत्वपूर्ण साधन हैं।
- तालाब और तलैया: छोटे जल स्रोत जो स्थानीय उपयोग के लिए होते हैं।
भारतीय जल संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा नदियों से प्राप्त होता है, लेकिन प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण इनका स्तर घट रहा है।
2. भौम जल संसाधन
भौम जल का मतलब है वह जल जो जमीन के नीचे स्थित है। भारत में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन किमी हैं। भौम जल का अधिक उपयोग पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में होता है।
जल उपयोग का महत्व
भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि में संलग्न है, जिसके कारण जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग होता है। जल की उपलब्धता और गुणवत्ता सीधे कृषि उत्पादन को प्रभावित करती है।
सिंचाई की मांग
भारतीय कृषि प्रणाली में सिंचाई का महत्व अत्यधिक है। सिंचाई की बढ़ती मांग के लिए कुछ प्रमुख कारण हैं:
- वर्षा का असमान वितरण: भारत में वर्षा मुख्यतः मानसून के मौसम में होती है, जिससे सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
- वर्षा की अनिश्चितता: वर्षा की मात्रा और समय में उतार-चढ़ाव के कारण सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है।
- मानसूनी जलवायु: भारत की जलवायु मानसूनी है, जिसमें तीन से चार महीने ही वर्षा होती है।
- बढ़ती जनसंख्या: खाद्यान्न की मांग में वृद्धि के कारण सिंचाई की आवश्यकता भी बढ़ रही है।
जल संसाधनों से संबंधित समस्याएँ
जल संसाधनों का उपयोग और प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है। भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता घट रही है।
प्रमुख समस्याएँ:
- जल की उपलब्धता में कमी: जनसंख्या वृद्धि और जल के अधिक उपयोग के कारण जल स्तर घट रहा है।
- जल के गुणों का ह्रास: जल भंडारों में बाहरी अवांछनीय पदार्थों का मिश्रण।
- जल प्रबंधन में कमी: सरकारी नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है।
- जल प्रदूषण: औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों के कारण जल प्रदूषित हो रहा है।
जल संसाधनों की कमी के कारण
भारत में जल संसाधनों की कमी के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं:
- अत्यधिक उपयोग: बढ़ती जनसंख्या के कारण जल का उपयोग बढ़ रहा है।
- कंक्रीट युक्त नगरीय क्षेत्र: नगरीकरण के कारण जल रिसाव में कमी आ रही है।
- जलवायु परिवर्तन: मानसून में परिवर्तन के कारण जल संसाधनों में कमी।
- कृषि में अत्यधिक जल उपयोग: बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जल का अत्यधिक उपयोग।
जल संरक्षण की आवश्यकता
जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। जल की घटती उपलब्धता और प्रदूषण के कारण, हमें ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
जल संरक्षण के उपाय
- जल पुनर्चक्रण: जल का पुनः उपयोग करना।
- वर्षा जल संग्रहण: वर्षा के जल को संचित करना।
- जल की समझ और जागरूकता: लोगों को जल के महत्व के बारे में जागरूक करना।
- सरकारी नीतियाँ: प्रभावी नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन।
जल संभर प्रबंधन
जल संभर प्रबंधन का तात्पर्य है जल संसाधनों का दक्ष प्रबंधन, जिसमें जल का सही उपयोग और संरक्षण शामिल होता है।
जल संभर प्रबंधन के उद्देश्य
- कृषि उत्पादन में वृद्धि करना।
- पर्यावरणीय हानि को रोकना।
- जल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करना।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- हरियाली योजना: ग्रामीण जल संरक्षण के लिए।
- नीरू-मीरु कार्यक्रम: आंध्र प्रदेश में जल संरक्षण की विधियाँ सिखाना।
- अरवारी पानी संसद: राजस्थान में जल प्रबंधन।
वर्षा जल संग्रहण
वर्षा जल संग्रहण का तात्पर्य वर्षा के जल को रोकने और एकत्रित करने से है।
आर्थिक और सामाजिक मूल्य
- जल की उपलब्धता बढ़ाना: सिंचाई और पशुपालन के लिए।
- भूमिगत जल स्तर को बनाए रखना: जल की गुणवत्ता में सुधार।
- समुदाय में सहयोग को बढ़ावा: सामूहिकता की भावना को बढ़ाना।
जल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
- जल अधिनियम 1974: प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण।
- पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986: जल प्रदूषण को कम करना।
- जल उपकर अधिनियम 1977: जल के उपयोग को नियंत्रित करना।
जल क्रांति अभियान
जल क्रांति अभियान का उद्देश्य जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है।
अभियान के तहत किए गए कार्य
- जल ग्राम बनाना: जल की कमी वाले क्षेत्रों में।
- 1000 हेक्टेयर मॉडल कमांड क्षेत्र की पहचान।
- प्रदूषण कम करने के उपाय: जल संरक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण।
निष्कर्ष
जल संसाधनों का सही प्रबंधन और संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। जल की घटती उपलब्धता और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। हमें जल के महत्व को समझना और इसे भविष्य के लिए सुरक्षित करना होगा। जल हमारे जीवन का आधार है, और इसके संरक्षण में सभी का योगदान आवश्यक है।