दो ध्रुवीयता का अंत (Political Science Class 11 Notes): कक्षा 12 के राजनीतिक विज्ञान का यह अध्याय “दो ध्रुवीयता का अंत” वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का अध्ययन करता है। इस अध्याय में सोवियत संघ का विघटन, एकध्रुवीय विश्व का उदय, मध्य एशियाई संकट (अफगानिस्तान), खाड़ी युद्ध, लोकतांत्रिक राजनीति, CIS (स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल) और 21वीं सदी की प्रमुख घटनाएँ जैसे अरब स्प्रिंग के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 Notes |
Subject | Political Science (राजनीति विज्ञान) |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | दो ध्रुवीयता का अंत |
Category | कक्षा 12 Political Science नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
दो ध्रुवीयता का परिचय
दो ध्रुवीयता का अर्थ
द्वि-ध्रुवीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो प्रमुख महाशक्तियाँ विद्यमान होती हैं, जिनकी क्षमताएँ तुलनात्मक होती हैं। इसे समझने के लिए हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस व्यवस्था में दोनों खेमे एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण रखते हैं।
शीत युद्ध का काल
शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच गहरा तनाव और प्रतिस्पर्धा थी। इस काल में विश्व को दो प्रमुख खेमों में बाँटा गया: एक खेमे का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था, जबकि दूसरे का नेतृत्व सोवियत संघ के पास था। यह विश्व व्यवस्था तब समाप्त हुई जब साम्यवादी खेमे का विघटन हुआ, जिससे दो ध्रुवीयता का अंत हो गया।
बर्लिन की दीवार
बर्लिन की दीवार शीत युद्ध के दौरान पूंजीवादी और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक बनी। इसे 1961 में बनाया गया, और यह पश्चिमी बर्लिन को पूर्वी बर्लिन से अलग करती थी। यह दीवार 150 किलोमीटर लंबी थी और लगभग 28 वर्षों तक खड़ी रही। 9 नवंबर 1989 को, जनता ने इस दीवार को तोड़ दिया, जो न केवल जर्मनी के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था।
सोवियत संघ (U.S.S.R.)
स्थापना और उद्देश्य
सोवियत संघ की स्थापना 1917 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद हुई। इस संघ का गठन 15 गणराज्यों को मिलाकर किया गया था, और इसका मुख्य उद्देश्य समाजवाद को लागू करना और गरीबों के हितों की रक्षा करना था। सोवियत संघ में एक समतामूलक समाज की स्थापना की कोशिश की गई, जिसमें आर्थिक और सामाजिक समानता को प्राथमिकता दी गई।
स्वतंत्र गणराज्य
सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 गणराज्यों ने स्वतंत्रता प्राप्त की। इनमें शामिल हैं:
- रूस
- कजाकिस्तान
- एस्टोनिया
- लातविया
- लिथुआनिया
- बेलारूस
- यूक्रेन
- माल्दोवा
- अर्मेनिया
- जॉर्जिया
- अजरबैजान
- तुर्कमेनिस्तान
- उज्बेकिस्तान
- ताजिकिस्तान
- किर्गिजस्तान
सोवियत संघ को महाशक्ति बनाने वाले कारक
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को एक महाशक्ति के रूप में उभरने में निम्नलिखित कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
विकसित अर्थव्यवस्था
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था विश्व के अन्य देशों की तुलना में अधिक विकसित थी। इसकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि का मुख्य कारण सरकारी नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन था।
संचार प्रणाली
सोवियत संघ की संचार प्रणाली उन्नत थी, जिसने देश के भीतर सूचना के प्रवाह को तेज किया। इससे न केवल आर्थिक विकास हुआ, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी प्रगति हुई।
ऊर्जा संसाधन
सोवियत संघ के पास विशाल ऊर्जा संसाधनों का भंडार था, जिसमें खनिज तेल, लोहा, इस्पात और मशीनरी उत्पाद शामिल थे। इन संसाधनों का सही तरीके से उपयोग कर, सोवियत संघ ने आर्थिक विकास को तेज किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत किया।
यातायात के साधन
सोवियत संघ में यातायात के साधनों का विकास अच्छी तरह से हुआ। यहाँ तक कि दूर-दराज के इलाकों में भी परिवहन की अच्छी सुविधाएँ थीं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों के बीच आपसी संपर्क बढ़ा।
बुनियादी सुविधाएँ
सोवियत संघ ने अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कीं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और बच्चों की देखभाल। इससे नागरिकों की जीवनस्तर में सुधार हुआ और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा मिला।
प्रमुख व्यक्तित्व
व्लादिमीर लेनिन
व्लादिमीर लेनिन, जिनका जन्म 1870 में हुआ, बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे। उन्होंने अक्टूबर 1917 की रूसी क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सोवियत समाजवादी गणराज्य (U.S.S.R.) के पहले अध्यक्ष बने। लेनिन ने मार्क्सवाद के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप में लागू किया और वैश्विक साम्यवाद के प्रेरणा स्रोत बने।
जोसेफ स्टालिन
जोसेफ स्टालिन, जो 1879 में जन्मे थे, लेनिन के बाद सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता बने। उन्होंने 1924 से 1953 तक नेतृत्व किया और इस दौरान सोवियत संघ का तेजी से औद्योगीकरण किया। स्टालिन के शासन में सामूहिकीकरण और तानाशाही की स्थापना हुई, जिसने देश के राजनीतिक और सामाजिक ढाँचे को प्रभावित किया।
सोवियत प्रणाली
संरचना और सिद्धांत
सोवियत प्रणाली समाजवादी व्यवस्था पर आधारित थी, जिसमें राज्य की भूमिका महत्वपूर्ण थी। यह प्रणाली समाज को समानता के सिद्धांत पर आधारित करती थी और निजी संपत्ति के खिलाफ थी। सोवियत संघ का राजनीतिक ढाँचा कम्युनिस्ट पार्टी के आसपास केन्द्रित था, जिसमें किसी अन्य दल या विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं थी।
विशेषताएँ
- राजनीतिक प्रणाली: यह प्रणाली समाजवादी आदर्शों पर आधारित थी।
- आर्थिक नियंत्रण: अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी।
- संपत्ति का स्वामित्व: सभी प्रमुख उद्योगों और संसाधनों पर राज्य का स्वामित्व था।
खामियाँ
सोवियत प्रणाली में कई कमियाँ भी थीं, जैसे:
- नागरिकों का वास्तविक प्रतिनिधित्व न होना: नागरिकों को शासन की आलोचना करने की स्वतंत्रता नहीं थी।
- शक्ति का दुरुपयोग: शासन पर साम्यवादी दल के नेताओं और नौकरशाही का नियंत्रण था, जिससे शक्ति का दुरुपयोग होता था।
- आर्थिक आकांक्षाओं का असफल होना: नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाएँ पूरी नहीं हो रहीं थीं।
दूसरी दुनिया के देश
पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें समाजवादी खेमे के देश या “दूसरी दुनिया” कहा गया। इन देशों में साम्यवादी विचारधारा का अनुसरण किया गया, जिससे उनकी राजनीतिक और आर्थिक प्रणालियाँ एक-दूसरे से मिलती थीं।
सोवियत और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर
सोवियत और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण अंतर थे:
सोवियत अर्थव्यवस्था | अमेरिकी अर्थव्यवस्था |
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राज्य द्वारा नियंत्रित | न्यूनतम राज्य हस्तक्षेप |
योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था | स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता |
व्यक्तिगत पूंजी का अभाव | व्यक्तिगत पूंजी का महत्व |
समाजवादी आदर्श | पूंजीवादी लाभ का सिद्धांत |
उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व | बाजार का नियंत्रण |
मिखाइल गोर्बाचेव
जीवनी
मिखाइल गोर्बाचेव का जन्म 1931 में हुआ। वह सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति रहे (1985-1991) और उन्हें रूसी इतिहास में सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने पेरेस्त्रोइका (पूनर्रचना) और ग्लासनोस्त (खुलेपन) जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक सुधार शुरू किए।
उपलब्धियाँ
गोर्बाचेव की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
- हथियारों की होड़ पर रोक: उन्होंने अमेरिका के साथ हथियारों की दौड़ को समाप्त करने के लिए कदम उठाए।
- सेना की वापसी: अफगानिस्तान और पूर्वी यूरोप से सोवियत सेना को वापस बुलाया।
- शीत युद्ध का अंत: गोर्बाचेव के नेतृत्व में शीत युद्ध समाप्त हुआ, जिससे वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया।
निष्कर्ष
अध्याय “दो ध्रुवीयता का अंत” हमें यह समझाता है कि कैसे सोवियत संघ का विघटन और अन्य घटनाएँ वैश्विक राजनीति को प्रभावित करती हैं। यह परिवर्तन न केवल दो ध्रुवीयता के अंत का संकेत था, बल्कि एक नए एकध्रुवीय विश्व के उदय की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम था। इस परिवर्तन ने विश्व के विभिन्न देशों के बीच संबंधों को भी पुनः परिभाषित किया, और आज हम जिस वैश्विक राजनीतिक स्थिति का सामना कर रहे हैं, उसमें इसकी गहरी छ
ाप है।
इस अध्याय में शामिल विचार और घटनाएँ न केवल अतीत के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि हमारे वर्तमान और भविष्य को समझने में भी सहायक हैं। इस प्रकार, यह अध्ययन हमारे लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो विश्व राजनीति की जटिलताओं और चुनौतियों को समझने में मदद करता है।