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पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन – JAC Class 12 Political Science Chapter 8 Notes

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पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Political Science Class 11 Notes): आज के युग में, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। कक्षा 12 के इस राजनीतिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में हम पर्यावरणीय आंदोलनों, वैश्विक तापन, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को समझेंगे। यह अध्ययन न केवल हमारे जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

TextbookNCERT
ClassClass 12 Notes
SubjectPolitical Science (राजनीति विज्ञान)
ChapterChapter 8
Chapter Nameपर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Categoryकक्षा 12 Political Science नोट्स
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पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन – JAC Class 12 Political Science Chapter 8 Notes

पर्यावरण की परिभाषा

पर्यावरण शब्द “परि” और “आवरण” से मिलकर बना है। “परि” का अर्थ है चारों ओर और “आवरण” का अर्थ है ढंकना। इसलिए पर्यावरण उन सभी चीजों का संपूर्णता है जो किसी भौतिक या अमूर्त वस्तु को चारों ओर से घेरती हैं। पर्यावरण का अर्थ उन सभी परिस्थितियों और प्रभावों से है जो किसी भी स्थान पर मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं।

पर्यावरण की संरचना

पर्यावरण को समझने के लिए हमें इसके घटकों की पहचान करनी होगी। यह मुख्यतः चार श्रेणियों में विभाजित होता है:

  1. भौतिक घटक: इसमें जल, भूमि, वायु, और जलवायु शामिल हैं।
  2. जैविक घटक: इसमें जीव-जंतु, पौधे और सूक्ष्मजीव शामिल हैं।
  3. आर्थिक घटक: इसमें संसाधनों का उपयोग, उद्योग, और कृषि शामिल हैं।
  4. सामाजिक और सांस्कृतिक घटक: इसमें मानव समाज, संस्कृति, और परंपराएँ शामिल हैं।

पर्यावरण की भूमिका

पर्यावरण का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व है। यह जीवन के लिए आवश्यक सभी संसाधनों का आधार है। प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, मिट्टी, वन, और खनिज, हमारे जीवन की आधारशिला हैं। पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि इसके विघटन से न केवल प्राकृतिक जीवन प्रभावित होता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी बुरा असर पड़ता है।

प्राकृतिक संसाधन

प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए प्रकृति से प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग खाद्य उत्पादन, ऊर्जा, और औद्योगिक विकास में किया जाता है। प्राकृतिक संसाधनों को मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. नवीकरणीय संसाधन: जैसे कि जल, वन, और सूर्य की रोशनी। ये संसाधन पुनः उत्पन्न हो सकते हैं।
  2. अतिरिक्त संसाधन: जैसे कि कोयला, पेट्रोलियम, और खनिज। ये संसाधन सीमित हैं और एक बार उपयोग करने के बाद पुनः प्राप्त नहीं हो सकते।

समकालीन राजनीति में पर्यावरण की चिंता

आज के समय में पर्यावरण संबंधी चिंताओं का बढ़ना कई कारणों से है:

  1. कृषि भूमि में कमी: शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण कृषि भूमि घट रही है।
  2. वैश्विक तापन: जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौसम में परिवर्तन हो रहा है।
  3. जल संकट: पीने योग्य जल की उपलब्धता में कमी आ रही है।
  4. वायु और जल प्रदूषण: औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण प्रदूषण स्तर बढ़ रहा है।
  5. ओजोन परत का क्षय: यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है।

प्रदूषण के प्रकार

  1. वायु प्रदूषण: औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन उत्सर्जन और धूल के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
  2. जल प्रदूषण: औद्योगिक कचरे, कृषि रसायनों और घरेलू कचरे के कारण जल प्रदूषित हो रहा है।
  3. भूमि प्रदूषण: प्लास्टिक कचरे और अन्य अव्यवस्थित अपशिष्टों के कारण भूमि की गुणवत्ता में कमी आ रही है।

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण तब होता है जब प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया जाता है, या जब मानव गतिविधियाँ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ती हैं। प्रदूषण के कई प्रकार हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, और भूमि प्रदूषण।

प्रदूषण के कारण

  1. जनसंख्या वृद्धि: बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
  2. वनों की कटाई: वनों के अत्यधिक दोहन से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
  3. उपभोक्तावादी संस्कृति: उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति ने संसाधनों के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा दिया है।
  4. औद्योगिकीकरण: उद्योगों के विकास के साथ प्रदूषण भी बढ़ रहा है।
  5. परिवहन के साधनों की वृद्धि: बढ़ते वाहनों की संख्या से वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

प्रदूषण के संरक्षण के उपाय

  • जनसंख्या नियंत्रण: जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना आवश्यक है।
  • वन संरक्षण: वनों की रक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन।
  • पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग: स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग।
  • प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग: संसाधनों का अत्यधिक दोहन रोकना।
  • जन जागरूकता कार्यक्रम: लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए सहयोग करना।

“लिमिट्स टू ग्रोथ” पुस्तक

1972 में “क्लब ऑफ रोम” के विद्वानों ने “लिमिट्स टू ग्रोथ” नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में बताया गया कि मानव जनसंख्या और संसाधनों के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है।

पुस्तक की प्रमुख बातें

  • जनसंख्या वृद्धि के साथ संसाधनों की उपलब्धता घटती जा रही है।
  • हमें प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी उपयोग सुनिश्चित करना होगा।

यू.एन.ई.पी.

यू.एन.ई.पी. (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना है।

यू.एन.ई.पी. के कार्य

  1. विश्वस्तर पर सम्मेलन: पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलनों का आयोजन।
  2. वैज्ञानिक ज्ञान का प्रचार: पर्यावरण पर आधारित वैज्ञानिक ज्ञान और सूचना का प्रसार।
  3. जैव विविधता का संरक्षण: जैव विविधता की रक्षा के लिए नीति निर्माण।

रियो सम्मेलन (Earth Summit)

1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसे पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) कहा जाता है।

सम्मेलन की विशेषताएँ

  • इस सम्मेलन में 170 देशों और कई संगठनों ने भाग लिया।
  • विश्व के धनी और विकासशील देशों के बीच पर्यावरण की चिंता को लेकर मतभेद सामने आए।
  • जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, और वानिकी के संबंध में नियम बनाए गए।
  • टिकाऊ विकास का सिद्धांत पेश किया गया।

टिकाऊ विकास का सिद्धांत

टिकाऊ विकास का अर्थ है आर्थिक विकास करना, लेकिन इस तरह से कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

टिकाऊ विकास के सिद्धांतों

  1. अपरिग्रह की भावना: आवश्यकताओं में कमी लाना।
  2. प्राकृतिक सह-अस्तित्व: प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग।
  3. समुदाय आधारित विकास: स्थानीय स्तर पर विकास को प्राथमिकता देना।

“अवर कॉमन फ्यूचर” रिपोर्ट

1987 में आई इस रिपोर्ट में कहा गया कि वर्तमान आर्थिक विकास के तरीके दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ नहीं होंगे।

अजेंडा – 21

रियो सम्मेलन में विकास के तरीकों को अजेंडा – 21 के रूप में प्रस्तुत किया गया।

अजेंडा – 21 की आलोचना

कुछ आलोचकों का कहना है कि यह योजना आर्थिक वृद्धि की ओर ज्यादा झुकाव रखती है, जबकि पर्यावरण संरक्षण को पर्याप्त महत्व नहीं देती।

साझी संपदा

साझी संपदा वे संसाधन हैं जिन पर किसी एक का वास्तविक अधिकार नहीं होता, बल्कि यह समुदाय का साझा अधिकार होता है।

उदाहरण

  1. संयुक्त परिवार का चूल्हा: जहां सभी सदस्य मिलकर भोजन बनाते हैं।
  2. चारागाह: जहां सभी किसान अपने पशुओं को चराने ले जाते हैं।
  3. कुआँ: जहां पानी का उपयोग सभी करते हैं।

वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत

कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं जो किसी एक देश की संप्रभुता से बाहर होते हैं, जैसे अंटार्कटिका और बाहरी अंतरिक्ष। इन्हें “वैश्विक संपदा” या “मानवता की साझी विरासत” कहा जाता है।

वैश्विक संपदा की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग

इस दिशा में कई महत्वपूर्ण समझौते किए गए हैं,

जैसे:

  • अंटार्कटिका संधि (1959): अंटार्कटिका का उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए ही किया जा सकता है।
  • मांट्रियल प्रोटोकॉल (1987): ओजोन परत को सुरक्षित करने के लिए देशों को एक साथ लाने वाला समझौता।

साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी

वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद हैं। विकसित देश मानते हैं कि सभी देशों को समान जिम्मेदारी निभानी चाहिए, जबकि विकासशील देश इसकी जिम्मेदारी को असंगत मानते हैं।

जिम्मेदारी का पुनर्विभाजन

विकासशील देशों का तर्क है कि:

  1. विकसित देशों ने अधिक प्रदूषण किया है।
  2. विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में हैं, इसलिए उनकी जिम्मेदारी कम होनी चाहिए।

निष्कर्ष

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए आवश्यक है। हम सभी को मिलकर पर्यावरण की रक्षा करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वैश्विक स्तर पर सहयोग और स्थायी विकास की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि हम एक स्वस्थ और सुरक्षित ग्रह का निर्माण कर सकें।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट है कि पर्यावरण की रक्षा करना एक सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने, संसाधनों का संतुलित उपयोग करने और पर्यावरणीय नीतियों को अपनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

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