फैशन डिज़ाइन और व्यापार (Home Science Class 12 Notes): इस अध्याय में हम फैशन डिज़ाइन और व्यापार के महत्व पर चर्चा करेंगे। हम फैशन की मूल अवधारणाओं को समझेंगे और जानेंगे कि कैसे शिक्षार्थी फैशन उद्योग में एक सफल करियर बनाने के लिए तैयारी कर सकते हैं। इसके साथ ही, हम फैशन उद्योग के विभिन्न पहलुओं जैसे विनिर्माण, क्रय, संवर्धन, और विक्रय के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 Notes |
Subject | Home Science (गृह विज्ञान) |
Chapter | Chapter 12 |
Chapter Name | फैशन डिज़ाइन और व्यापार |
Category | कक्षा 12 Home Science नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
फैशन की परिभाषा
फैशन एक ऐसी शैली या शैलियाँ हैं जो किसी विशिष्ट कालावधि में प्रचलित होती हैं। यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम है, जो न केवल व्यक्तिगत स्वाद को दर्शाता है बल्कि समाज की प्रवृत्तियों और मानदंडों को भी प्रतिबिंबित करता है। फैशन का विकास समय के साथ-साथ होता है और यह विभिन्न सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों से प्रभावित होता है।
शैली की परिभाषा
शैली वह विशेषता है जो परिधान या सहायक सामग्री में निहित होती है। यह न केवल डिज़ाइन का रूप-रंग होता है, बल्कि यह उस वस्त्र की पहचान भी होती है। फैशन में कुछ शैलियाँ समय के साथ बदलती हैं, जबकि कुछ शैलियाँ हमेशा के लिए प्रचलित रहती हैं।
अस्थायी फैशन
अस्थायी फैशन ऐसे डिज़ाइन होते हैं जो कम समय के लिए प्रचलित होते हैं और जल्दी ही अप्रचलित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, हॉट पैंट, बैगी पैंट, और बेमेल बटन जैसे डिज़ाइन तेजी से आते हैं और जाते हैं। ये फैशन उन उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं जो नवीनता और अद्वितीयता की खोज में रहते हैं।
चिरसम्मत (क्लासिक) शैली
चिरसम्मत शैली वे हैं जो कभी भी पूरी तरह से अप्रचलित नहीं होतीं। ये लंबे समय तक मान्य होती हैं और डिज़ाइन की सादगी और स्थिरता के कारण ये हमेशा प्रासंगिक रहती हैं। उदाहरण के लिए, ब्लेज़र जैकेट, छोटी काली ड्रेस और चैनल सूट जैसी शैलियाँ हमेशा फैशन में बनी रहती हैं।
फैशन का विकास
प्राचीन काल से मध्यकाल
प्राचीन काल में, शैलियाँ धीरे-धीरे विकसित होती थीं और समाज की विशेषताओं के अनुसार बदलती थीं। उस समय, परिधान का निर्माण मुख्यतः शिल्पकला के माध्यम से होता था, जिसमें कारीगरों की विशेषज्ञता होती थी।
नवजागरण काल
नवजागरण काल में, पश्चिमी सभ्यता ने विभिन्न संस्कृतियों और परिधानों का अध्ययन किया। नए कपड़ों और विचारों की उपलब्धता ने फैशन के परिवर्तन को बढ़ावा दिया। इस समय के दौरान, फैशन में एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ, जिसमें व्यक्ति की रचनात्मकता और व्यक्तित्व को प्रमुखता दी गई।
फैशन का केंद्र: पेरिस
18वीं शताब्दी में पेरिस फैशन का प्रमुख केंद्र बन गया। यहाँ, अमीर वर्ग ने विशेष रूप से फैशन में रुचि दिखाई, और पेरिस को यूरोप की फैशन राजधानी बना दिया गया। इस समय, शाही न्यायालय से रेशमी वस्त्रों और लेस का विकास हुआ, जिससे फैशन उद्योग को एक नई दिशा मिली।
औद्योगिक क्रांति
औद्योगिक क्रांति ने वस्त्र निर्माण में प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाया। सिलाई मशीन के आविष्कार ने उत्पादन की गति और मात्रा को बढ़ाने में मदद की। इस दौरान, अमरीका में वस्त्र उद्योग का विकास हुआ और मध्य वर्ग का उदय हुआ, जिससे फैशन का लोकतंत्रीकरण हुआ।
फैशन चक्र
फैशन चक्र वह प्रक्रिया है जिसमें फैशन का विकास होता है। यह निम्नलिखित चरणों में चलता है:
- शैली की प्रस्तुति: डिज़ाइनर अपने शोध और रचनात्मक विचारों को परिधान में ढालते हैं।
- लोकप्रियता में वृद्धि: जब नया फ़ैशन बहुत से लोगों द्वारा अपनाया जाता है, तो इसकी मांग बढ़ने लगती है।
- लोकप्रियता की पराकाष्ठा: जब फ़ैशन अपनी उच्चतम लोकप्रियता पर पहुँचता है, तो इसकी मांग इतनी बढ़ जाती है कि कई निर्माता इसकी नकल करने लगते हैं।
- लोकप्रियता में कमी: समय के साथ, उपभोक्ता उस शैली से ऊब जाते हैं और नया फ़ैशन खोजने लगते हैं।
- शैली का परित्याग: अंततः, कुछ उपभोक्ता नए रंग-रूप में आ जाते हैं और इस प्रकार नया फैशन चक्र प्रारंभ होता है।
फैशन व्यापार
फैशन व्यापार की परिभाषा
फैशन व्यापार का अर्थ है सही समय, स्थान और मूल्य पर बिक्री के लिए आवश्यक योजना बनाना। सही रणनीतियों के माध्यम से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है। फैशन व्यापार में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उपभोक्ता की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए।
फैशन व्यापारी
फैशन व्यापारी वह व्यक्ति होता है जो डिज़ाइन को वास्तविकता में बदलने का काम करता है। वह उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और मांगों के अनुसार उत्पादों की योजना, उत्पादन, संवर्धन और वितरण पर ध्यान देता है। व्यापारी का काम न केवल क्रियान्वयन है, बल्कि वह फैशन उद्योग में नवाचार भी लाता है।
फैशन व्यापार को समझना
फैशन व्यापार की अच्छी समझ के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
- विनिर्माण: फैशन व्यापारी परिधान बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के कपड़ों का उपयोग करते समय सावधानी बरतते हैं। उन्हें कपड़ों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी होनी चाहिए ताकि वे डिज़ाइन को साकार कर सकें।
- क्रय: जब व्यापारी फैशन सामग्री खरीदता है, तो उसे लक्षित बाजार के बारे में जानकारी होनी चाहिए। एक कुशल व्यापारी फैशन प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने में सक्षम होता है, जिससे वह सही समय पर सही उत्पाद खरीद सके।
- संवर्धन: फैशन व्यापारी डिज़ाइनर के उत्पाद को उन दुकानों तक पहुँचाने का काम करते हैं जो उसे अधिक मात्रा में खरीदना चाहें। इस प्रक्रिया में, उन्हें विभिन्न प्रकार के विपणन और विज्ञापन तकनीकों का उपयोग करना पड़ता है।
- विक्रय: विक्रय फैशन व्यापार का अंतिम घटक है। व्यापारी दुकानों को फैशन की वस्तुएँ बेचने के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन्हें बाजार की प्रवृत्तियों और उपभोक्ता की पसंद को ध्यान में रखते हुए वस्तुओं के उत्पादन की अनुशंसा करनी होती है।
व्यापार के स्तर
फैशन उद्योग में व्यापार के तीन स्तर होते हैं:
- खुदरा संगठन में व्यापारिक गतिविधियाँ: यह व्यापार फैशन की दुकानों को डिज़ाइनर के प्रदर्शन कक्ष से खुदरा दुकानों तक उत्पाद पहुँचाने का कार्य करता है।
- क्रय एजेंसी व्यापार: यह एजेंसी ग्राहकों के लिए सामान उपलब्ध कराने का कार्य करती है। इसमें विक्रेताओं की पहचान करना और मूल्य का मोलभाव करना शामिल है।
- निर्यात उद्यम: इसमें दो प्रकार के व्यापारी होते हैं, जैसे क्रय एजेंट और उत्पादक व्यापारी। ये व्यापारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैशन उत्पादों का व्यापार करते हैं।
बाजार विभाजन
बाजार विभाजन उपभोक्ताओं के समूह बनाने की प्रक्रिया है। इसके चार प्रकार हैं:
- जनांकिकीय विभाजन: यह विभाजन जनसंख्या, आयु, जेंडर, व्यवसाय, शिक्षा और आय पर आधारित होता है।
- भौगोलिक विभाजन: यह विभाजन नगरों, राज्यों और क्षेत्रों पर आधारित होता है। भौगोलिक विविधताएँ फैशन के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- मनोवृत्तिपरक विभाजन: यह विभाजन सामाजिक गतिविधियों, अभिरुचियों, आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर आधारित होता है। समान जीवन शैलियों वाले लोग एक लक्षित बाजार समूह बना सकते हैं।
- व्यवहारगत विभाजन: यह विभाजन विशिष्ट उत्पादों या सेवाओं की राय पर आधारित होता है। इसमें उपभोक्ताओं के व्यवहार और प्राथमिकताओं का विश्लेषण किया जाता है।
फ़ैशन के खुदरा संगठन
फैशन के खुदरा संगठन में प्राधिकारियों की स्पष्ट समझ और उत्तरदायित्व शामिल होते हैं। संगठन प्रणाली विभिन्न प्रकार की व्यापार सामग्री और लक्षित ग्राहकों के अनुसार भिन्न होती है।
प्रमुख विभाग
- व्यापारिक प्रभाग: इसमें क्रय, विक्रय और फैशन समन्वय शामिल होते हैं।
- विक्रय और संवर्धन प्रभाग: इसमें विज्ञापन, दृश्य व्यापार विशेष घटनाएँ, प्रचार और जनसंपर्क शामिल होते हैं।
- वित्त और नियंत्रण प्रभाग: इसमें जमा, खातादेय और सामान सूची नियंत्रण शामिल होता है।
- प्रचालन प्रभाग: इसमें सुविधाओं और व्यापार सामग्री के सुरक्षा की देखभाल की जाती है।
- **कार्मिक प्रभाग
**: इसमें कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण और प्रबंधन शामिल होता है।
लक्षित बाजार
लक्षित बाजार वह उपभोक्ता श्रेणी है जिसे व्यापारी अपने उत्पाद बेचने के लिए लक्ष्य करते हैं। यह विक्रय विभाग को उपभोक्ताओं पर केंद्रित करने में मदद करता है, जिससे विपणन की योजनाएँ अधिक प्रभावी बनती हैं।
निष्कर्ष
इस अध्याय में हमने फैशन डिज़ाइन और व्यापार के विभिन्न पहलुओं को समझा है। यह स्पष्ट है कि फैशन उद्योग न केवल रचनात्मकता की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि यह व्यापारिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। फैशन में एक सफल करियर के लिए शिक्षार्थियों को आवश्यक ज्ञान और कौशल विकसित करने की आवश्यकता है। यह उद्योग युवा प्रतिभाओं के लिए कई अवसर प्रदान करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि वे अपनी रचनात्मकता और व्यावसायिक कौशल को विकसित कर सकें।
अंत में, फैशन उद्योग का अध्ययन न केवल हमें कपड़ों के डिजाइन की कला सिखाता है, बल्कि यह हमें व्यापारिक प्रवृत्तियों और उपभोक्ता व्यवहार को समझने में भी मदद करता है। शिक्षार्थियों को चाहिए कि वे इस क्षेत्र में नवीनतम प्रवृत्तियों से अपडेट रहें और अपने ज्ञान का विस्तार करते रहें ताकि वे एक सफल और प्रेरणादायक करियर बना सकें।