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निर्माण उद्योग – JAC Class 12 Geography Part 2 Chapter 8 Notes

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निर्माण उद्योग (JAC Class 12 Geography Notes): इस अध्याय में हम निर्माण उद्योग की बारीकियों, लौह-इस्पात उद्योग की भूमिका, सूती वस्त्र उद्योग के विकास, और उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण जैसे महत्वपूर्ण विषयों का गहराई से अध्ययन करेंगे। इन सबका भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography (भूगोल) Part – 2
ChapterChapter 8
Chapter Nameनिर्माण उद्योग
Categoryकक्षा 12 Geography नोट्स
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Official WebsiteJAC Portal
निर्माण उद्योग – JAC Class 12 Geography Part 2 Chapter 8 Notes

औद्योगिक प्रदेश

औद्योगिक प्रदेशों का निर्माण विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। जब किसी विशेष क्षेत्र में उद्योगों का संकेन्द्रण होता है, तो वहाँ श्रमिकों की संख्या बढ़ती है, ऊर्जा की खपत में वृद्धि होती है, और उत्पादों के मूल्य में वृद्धि होती है। यह सभी विशेषताएँ किसी क्षेत्र को औद्योगिक प्रदेश का दर्जा देती हैं।

विनिर्माण उद्योग

विनिर्माण उद्योग कच्चे माल को मशीनों की सहायता से उपयोगी तैयार माल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में वस्तुओं का रूपांतर होता है और उनके मूल्य में वृद्धि होती है।

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उद्योगों के प्रकार

उद्योगों को विभिन्न मानकों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

स्वामित्व के आधार पर

  1. सार्वजनिक क्षेत्र: सरकारी स्वामित्व वाले उद्योग।
  2. निजी क्षेत्र: निजी व्यक्तियों या कंपनियों के स्वामित्व में।
  3. मिश्रित क्षेत्र: सरकारी और निजी दोनों का समावेश।
  4. सहकारी क्षेत्र: सहकारी समितियों द्वारा संचालित।

उत्पाद के उपयोग के आधार पर

  1. आधारभूत उद्योग: बुनियादी वस्तुएँ जैसे कच्चे माल का उत्पादन।
  2. उपभोक्ता उद्योग: सीधे उपभोक्ताओं को उत्पादित वस्तुएँ।
  3. पूंजी वस्तु उद्योग: मशीनरी और उपकरणों का उत्पादन।
  4. अर्धनिर्मित वस्तु उद्योग: उन वस्तुओं का उत्पादन जो आगे की प्रक्रिया के लिए तैयार होती हैं।

कच्चे माल के स्रोत के आधार पर

  1. कृषि आधारित: कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित।
  2. खनिज आधारित: खनिजों से संबंधित उद्योग।
  3. वन आधारित: लकड़ी और अन्य वन उत्पादों का उपयोग।
  4. पशु आधारित: पशु उत्पादों से संबंधित उद्योग।

निर्मित वस्तुओं के स्वरूप के आधार पर

  1. धातु आधारित: धातुओं से संबंधित उद्योग।
  2. यंत्रिक इंजीनियरिंग: मशीनों और उपकरणों का निर्माण।
  3. रसायन आधारित: रसायनों का उत्पादन।
  4. वस्त्र उद्योग: कपड़ों का उत्पादन।
  5. खाद्य प्रसंस्करण: खाद्य सामग्री का प्रसंस्करण।
  6. विद्युत निर्माण: बिजली उत्पादन।
  7. इलेक्ट्रॉनिक: इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्माण।
  8. संचार उद्योग: संचार उपकरणों का उत्पादन।
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उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

उद्योगों की स्थापना और विकास में कई कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

  1. कच्चे माल की उपलब्धता: उद्योग का स्थान कच्चे माल के स्रोत के निकट होना चाहिए।
  2. शक्ति के साधन: उद्योग की स्थापना के लिए ऊर्जा की आवश्यक आपूर्ति।
  3. परिवहन: सस्ते और कुशल परिवहन प्रणाली का होना आवश्यक है।
  4. बाजार: उत्पाद की खपत के लिए निकट बाजार का होना महत्वपूर्ण है।
  5. श्रम: कुशल श्रमिकों की उपलब्धता उद्योगों के विकास में सहायक होती है।
  6. ऐतिहासिक कारक: औपनिवेशिक काल के दौरान विकसित उद्योग केन्द्रों का प्रभाव।

मुख्य उद्योग

  1. लौह-इस्पात उद्योग: भारत का औद्योगिक विकास मुख्यतः लौह-इस्पात उद्योग पर निर्भर करता है। उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क के स्रोत छत्तीसगढ़, झारखंड, और ओडिशा में स्थित हैं।
  2. सूती वस्त्र उद्योग: औपनिवेशिक काल के दौरान विकसित हुआ, मुख्यतः मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में।
  3. चीनी उद्योग: भारत का यह उद्योग, प्रमुखता से उत्तर प्रदेश और बिहार में विकसित हुआ है।
  4. पेट्रो-रसायन उद्योग: यह उद्योग तेजी से विकसित हो रहा है और इसमें रसायनों और प्लास्टिक का प्रमुख उत्पादन होता है।
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नई औद्योगिक नीति (1991)

1991 में भारत ने औद्योगिक नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए।

  • उद्देश्य: औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली को समाप्त करना, विदेशी तकनीक और निवेश को आमंत्रित करना, और औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण।
  • उदारीकरण: निजी क्षेत्र के लिए प्रतिबंधों को कम करना।
  • निजीकरण: सरकार का उद्योगों में प्रभुत्व समाप्त करना।
  • वैश्वीकरण: भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ना।

औद्योगिक प्रदेशों की विशेषताएँ

भारत के विभिन्न औद्योगिक प्रदेशों की अपनी विशिष्टताएँ हैं:

  • मुंबई-पुणे क्षेत्र: यह औद्योगिक विकास का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ सूती वस्त्र, पेट्रोलियम, और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग प्रमुखता से विकसित हुए हैं।
  • गुजरात: सूती वस्त्र, रसायन, और पेट्रो-रसायन उद्योगों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है।

निष्कर्ष

निर्माण उद्योग केवल आर्थिक विकास में ही नहीं, बल्कि समाज के अन्य पहलुओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छात्रों के लिए इस उद्योग की विभिन्न धाराओं का अध्ययन आवश्यक है ताकि वे औद्योगिक नीतियों और विकास के दृष्टिकोण को सही रूप में समझ सकें। भारत में निर्माण उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है, और इसके साथ जुड़े विभिन्न पहलुओं का ज्ञान आवश्यक है।

इस अध्ययन से न केवल छात्रों को उद्योगों की संरचना का ज्ञान होगा, बल्कि वे आर्थिक विकास में उनकी भूमिका को भी समझ सकेंगे, जिससे वे बेहतर निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

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