भू संसाधन तथा कृषि (JAC Class 12 Geography Notes): इस अध्याय में हम भू संसाधनों और कृषि के महत्वपूर्ण पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे। इसमें भू-उपयोग का वर्गीकरण, साझा संपत्ति संसाधन, भारत में कृषि की स्थिति, हरित क्रांति, और कृषि से संबंधित अन्य विषयों पर चर्चा की जाएगी। यह विषय न केवल भूगोल के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन और अर्थव्यवस्था में भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 |
Subject | Geography (भूगोल) Part – 2 |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | भू संसाधन तथा कृषि |
Category | कक्षा 12 Geography नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
भू-उपयोग वर्गीकरण
भू-उपयोग वर्गीकरण का अर्थ है विभिन्न प्रकार की भूमि का उपयोग कैसे किया जा रहा है। यह वर्गीकरण भूराजस्व विभाग द्वारा किया जाता है और इसमें विभिन्न श्रेणियाँ शामिल होती हैं। भू-उपयोग का सही ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि संसाधनों का प्रबंधन कैसे किया जा रहा है।
भू-उपयोग वर्गीकरण के प्रमुख प्रकार
- वनों के अधीन क्षेत्र:
- ये वे क्षेत्र हैं जो पूरी तरह से वनों के अधीन होते हैं। भारत में सरकार ने ऐसे क्षेत्रों का सीमांकन किया है जहाँ वन विकसित किए जा सकते हैं। इन क्षेत्रों में जैव विविधता का संरक्षण भी किया जाता है।
- गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि:
- इस श्रेणी में वे भूमि आती हैं जो सड़कों, नहरों, औद्योगिक इकाइयों और दुकानों जैसे गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग की जाती हैं। यह भूमि विकास और आधुनिकता के प्रतीक हैं।
- बंजर एवं व्यर्थ भूमि:
- यह भूमि कृषि के लिए अयोग्य होती है। उदाहरण के लिए, ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र, रेगिस्तान, और अन्य प्रकार की अनुपयुक्त भूमि। इन क्षेत्रों का उपयोग विशेष रूप से किसी अन्य कार्य के लिए नहीं किया जा सकता।
- स्थायी चारागाह क्षेत्र:
- यह भूमि आमतौर पर ग्राम पंचायत या सरकारी स्वामित्व में होती है। यह भूमि जानवरों के चराई के लिए उपयोग की जाती है और इसमें चारागाह के पौधे उगाए जाते हैं।
- कृषि योग्य व्यर्थ भूमि:
- यह ऐसी भूमि है जो पिछले पाँच वर्षों से उपेक्षित है, लेकिन इसे उचित तकनीकों द्वारा कृषि के लिए योग्य बनाया जा सकता है।
- वर्तमान परती भूमि:
- यह भूमि एक वर्ष या उससे कम समय के लिए खेती से वंचित होती है। यह भूमि की उर्वरता को बनाए रखने का एक प्राकृतिक तरीका है।
- पुरातन परती भूमि:
- ऐसी भूमि जिसे एक वर्ष से अधिक, लेकिन पाँच वर्ष से कम के लिए खेती में नहीं लिया जाता है।
- निबल बोया क्षेत्र:
- वह भूमि जिस पर किसी कृषि वर्ष में फसलें उगाई और काटी जाती हैं।
- विविध तरु फसलों एवं उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र:
- इस श्रेणी में वे भूमि शामिल होती हैं जहाँ उद्यान और फलदार वृक्ष होते हैं। यह भूमि आमतौर पर निजी स्वामित्व में होती है।
शुद्ध बुआई क्षेत्र
शुद्ध बुआई क्षेत्र वह क्षेत्र है जहाँ किसी विशेष कृषि वर्ष में बोई गई कुल फसलें होती हैं। यह आंकड़ा कृषि उत्पादन के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है।
सकल बोया गया क्षेत्र
सकल बोया गया क्षेत्र में शुद्ध बुआई क्षेत्र के अलावा वे क्षेत्र भी शामिल होते हैं जहाँ एक से अधिक बार फसलें उगाई गई हैं।
साझा संपत्ति संसाधन
साझा संपत्ति संसाधनों पर सामान्यतः राज्य का स्वामित्व होता है। ये संसाधन ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये ग्रामीण निवासियों की रोजी-रोटी का एक बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं।
साझा संपत्ति संसाधन का महत्व
- आर्थिक सहायता: ये संसाधन विशेष रूप से भूमिहीन छोटे किसानों और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए जीवनयापन का एक साधन बनते हैं।
- महिलाओं की भूमिका: ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाओं की जिम्मेदारी चारा और ईंधन एकत्र करने की होती है। यह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वन उत्पाद: साझा संपत्ति संसाधन फल, रेशे, गिरी, औषधीय पौधों आदि का भी स्रोत होते हैं। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
साझा संपत्ति संसाधन की प्रमुख विशेषताएँ
- चारा, ईंधन, लकड़ी, और अन्य वन उत्पाद साझा संपत्ति संसाधनों में आते हैं।
- ये संसाधन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन यापन में विशेष महत्व रखते हैं।
- सामुदायिक वन, चारागाह, और अन्य सार्वजनिक स्थान साझा संपत्ति संसाधन के उदाहरण हैं।
भारत में कृषि ऋतु
1. खरीफ ऋतु
खरीफ ऋतु जून से सितंबर तक होती है। इस दौरान मुख्यतः चावल, कपास, ज्वार, बाजरा, और अरहर जैसी फसलें उगाई जाती हैं। यह ऋतु दक्षिण-पश्चिम मानसून के साथ जुड़ी हुई है।
2. रबी ऋतु
रबी ऋतु अक्टूबर-नवंबर में शुरू होती है और इस दौरान गेहूँ, चना, तोराई, सरसों, और जौ की फसलें लगाई जाती हैं। यह फसलें शीतल मौसम में अच्छी होती हैं।
3. जायद ऋतु
जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु है जो रबी की कटाई के बाद प्रारंभ होती है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, सब्जियाँ, और चारे की फसलों की खेती की जाती है।
कृषि के प्रकार
1. सिंचित कृषि
सिंचित कृषि में वर्षा के अतिरिक्त जल का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य अधिकतम क्षेत्र को आर्द्रता प्रदान करना और फसलों की उत्पादकता बढ़ाना है।
2. वर्षा निर्भर कृषि
यह पूर्णतया वर्षा पर निर्भर होती है। इसे शुष्क भूमि कृषि और आर्द्र भूमि कृषि में बाँटा जाता है। वर्षा की मात्रा और समय की अनिश्चितता इसे चुनौतीपूर्ण बनाती है।
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ
1. छोटी कृषि जोत
भारत में बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि जोत का आकार लगातार सिकुड़ रहा है। लगभग 60 प्रतिशत किसानों की जोतें एक हेक्टेयर से भी कम हैं, जिससे आर्थिक दृष्टि से खेती लाभकारी नहीं रह जाती।
2. कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण
यह समस्या कृषि की एक गंभीर चुनौती है। भूमि की उर्वरता में कमी आ रही है, जो कि अधिक सिंचाई, लवणता, और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण हो रही है।
3. अल्प बेरोजगारी
भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़ी पैमाने पर अल्प बेरोजगारी पाई जाती है। कृषि कार्यों में रोजगार की निरंतरता नहीं होती, जो ग्रामीणों के जीवन को प्रभावित करती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व
- कृषि देश की कुल श्रमिक शक्ति का लगभग 80 प्रतिशत है।
- राष्ट्रीय उत्पाद में 26 प्रतिशत योगदान करती है।
- कृषि से कई कृषि प्रधान उद्योगों को कच्चा माल मिलता है, जैसे कपड़ा उद्योग, जूट उद्योग, और चीनी उद्योग।
हरित क्रांति
1960-70 के दशक में खाद्यान्नों, विशेषकर गेहूँ के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि को हरित क्रांति कहा जाता है। इसके लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया गया:
हरित क्रांति की सफलता के प्रमुख कारण
- उच्च उत्पादकता वाले बीज: नए और उच्च उत्पादकता वाले बीजों का उपयोग किया गया।
- रासायनिक उर्वरकों का उपयोग: उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊता में वृद्धि हुई।
- सिंचाई की सुविधाएँ: सिंचाई के माध्यम से फसलों को पर्याप्त जल उपलब्ध कराया गया।
हरित क्रांति ने पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गेहूँ के उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि की है।
हरित क्रांति की विशेषताएँ
- उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग।
- सिंचाई की सुविधाएँ।
- रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाइयाँ।
- आधुनिक कृषि मशीनें।
भारतीय कृषि के विकास में हरित क्रांति की भूमिका
हरित क्रांति के दौरान भारत में खाद्यान्न उत्पादन के लिए नई किस्मों के बीज और कृषि निवेश उपलब्ध कराए गए, जिसे “पैकेज प्रौद्योगिकी” के नाम से जाना जाता है। इस पहल के परिणामस्वरूप, खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और भारत आत्मनिर्भर बना।
भूमि संसाधनों के निम्नीकरण के कारण
- अत्यधिक सिंचाई: नहरों द्वारा अत्यधिक सिंचाई के कारण लवणता और क्षारीयता में वृद्धि होती है।
- कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग: यह भूमि की उर्वरता को कम कर देता है।
- जलाक्रांतता: फसलों को समय पर उगाने की प्रक्रिया में बाधा आती है।
- फसलों का हेर-फेर: फसलों को नियमित रूप से बदलने की कमी।
निष्कर्ष
इस अध्याय में हमने भू संसाधनों और कृषि के विभिन्न पहलुओं का गहन अध्ययन किया। यह स्पष्ट है कि कृषि न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव है, बल्कि यह लाखों लोगों के जीवन का आधार भी है। हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन भूमि संसाधनों का संरक्षण भी उतना ही आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि sustainable agriculture (सतत कृषि) और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कैसे किया जाए, ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ भी इन संसाधनों का लाभ उठा सकें।
इस प्रकार, भू संसाधनों और कृषि का अध्ययन न केवल हमें वर्तमान स्थिति को समझने में मदद करता है, बल्कि यह हमें भविष्य के लिए योजनाएँ बनाने की दिशा में भी मार्गदर्शन करता है।