जनसंख्या वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन (JAC Class 12 Geography Notes): इस अध्याय में हम जनसंख्या वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन के विषय में गहराई से अध्ययन करेंगे। जनसंख्या वितरण से तात्पर्य है किसी विशेष क्षेत्र में जनसंख्या का कैसे और किस प्रकार से वितरण होता है। इसके अलावा, हम जनसंख्या घनत्व, जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न पहलुओं और जनसंख्या संघटन पर भी चर्चा करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 |
Subject | Geography (भूगोल) Part – 2 |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | जनसंख्या वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन |
Category | कक्षा 12 Geography नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
1. जनसंख्या वितरण
परिभाषा और महत्व
जनसंख्या वितरण का अर्थ है कि किसी विशेष क्षेत्र में जनसंख्या कैसे वितरित होती है। यह विभिन्न भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों के आधार पर भिन्न होता है। जनसंख्या वितरण के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि लोग कहाँ निवास करते हैं और क्यों कुछ क्षेत्र अधिक जनसंख्या वाले होते हैं जबकि अन्य क्षेत्र कम जनसंख्या वाले होते हैं।
उच्च जनसंख्या वाले राज्य
भारत में जनसंख्या वितरण में असमानता देखने को मिलती है। उच्च जनसंख्या वाले राज्यों में शामिल हैं:
- उत्तर प्रदेश: यह राज्य भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है।
- महाराष्ट्र
- बिहार
- पश्चिम बंगाल
- मध्य प्रदेश
- तमिलनाडु
- राजस्थान
- कर्नाटक
- गुजरात
- आंध्र प्रदेश
ये सभी राज्य मिलकर भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 76% हिस्सा रखते हैं।
मध्यम और कम जनसंख्या वाले राज्य
- मध्यम जनसंख्या वाले राज्य: असम, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, पंजाब, गोवा।
- कम जनसंख्या वाले राज्य: जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्य (असम को छोड़कर), और दिल्ली (केंद्र शासित प्रदेश)।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
भौगोलिक कारक
जनसंख्या वितरण पर विभिन्न भौगोलिक कारकों का प्रभाव होता है, जैसे:
- जल की उपलब्धता: जल स्रोतों के निकट बसे क्षेत्र अधिक जनसंख्या को आकर्षित करते हैं।
- भूआकृति: मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होती है, जबकि पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में कम होती है।
- जलवायु: जलवायु का प्रभाव भी महत्वपूर्ण होता है। जैसे कि गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम होता है।
- मृदा: उपजाऊ मृदा वाले क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या होती है क्योंकि ये कृषि के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं।
आर्थिक कारक
आर्थिक कारक भी जनसंख्या वितरण को प्रभावित करते हैं:
- खनिज संसाधन: खनिज संसाधनों वाले क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होती है।
- नगरीकरण: औद्योगिक क्षेत्रों में जनसंख्या का प्रवास बढ़ता है, जिससे जनसंख्या घनत्व बढ़ता है।
- औद्योगिकरण: औद्योगिक विकास भी जनसंख्या वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक कारक
- धार्मिक महत्व: कुछ क्षेत्र धार्मिक स्थानों के कारण अधिक जनसंख्या वाले होते हैं।
- अशांति: अशांत क्षेत्रों में जनसंख्या कम होती है क्योंकि लोग सुरक्षित स्थानों की ओर चले जाते हैं।
- खराब सामाजिक वातावरण: सामाजिक अव्यवस्था के कारण लोग उन क्षेत्रों से पलायन कर सकते हैं।
राजनीतिक कारण
राजनीतिक स्थिरता भी जनसंख्या वितरण को प्रभावित करती है:
- अस्थिर राजनीतिक स्थिति: अस्थिर राजनीतिक वातावरण में लोग सुरक्षित स्थानों की तलाश करते हैं।
- खराब कानूनी व्यवस्था: यदि कानून-व्यवस्था सही नहीं है, तो जनसंख्या वितरण प्रभावित होता है।
भारत में जनसंख्या वितरण घनत्व को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक
उच्चावच
उच्चावच का प्रभाव जनसंख्या वितरण पर स्पष्ट होता है। मैदानों में जनसंख्या अधिक होती है क्योंकि ये बसावट के लिए उपयुक्त होते हैं, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों और पठारी भागों में जनसंख्या कम होती है। उदाहरण के लिए, भारत में उत्तरी मैदान घना बसा हुआ है जबकि उत्तर-पूर्वी वर्षा वाले भागों में जनसंख्या घनत्व कम है।
जलवायु
जलवायु भी जनसंख्या वितरण को प्रभावित करती है। थार मरूस्थल में गर्म जलवायु और हिमालय के ठंडे क्षेत्रों में जनसंख्या कम होती है। इन क्षेत्रों में जीवन की कठिनाईयों के कारण लोग वहाँ बसने से बचते हैं।
मृदा
मृदा की गुणवत्ता जनसंख्या वितरण में महत्वपूर्ण होती है। उपजाऊ मृदा वाले क्षेत्रों में कृषि अच्छी होती है, जिससे ये क्षेत्र अधिक घने बसे होते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में जनसंख्या घनत्व अधिक है।
जल की उपलब्धता
जल की उपलब्धता जनसंख्या वितरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। जल स्रोतों के निकट बसे क्षेत्र, जैसे सतलुज-गंगा का मैदान और तटीय मैदान, अधिक जनसंख्या वाले होते हैं।
जनसंख्या घनत्व
जनसंख्या घनत्व का तात्पर्य है प्रति इकाई क्षेत्रफल पर निवास करने वाले लोगों की संख्या।
भारत में जनसंख्या घनत्व
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। यह संख्या विभिन्न राज्यों में भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, अरुणाचल प्रदेश में जनसंख्या घनत्व केवल 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जबकि बिहार में यह 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली का घनत्व सबसे अधिक 11320 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जबकि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में केवल 46 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। प्रायद्वीपीय भारत में केवल केरल का घनत्व 860 है, जबकि तमिलनाडु का घनत्व 555 है।
उत्तरी और उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों में जनसंख्या घनत्व बहुत कम है, जबकि मध्य प्रदेश और प्रायद्वीपीय भारत में जनसंख्या घनत्व मध्यम स्तर का है।
जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि का तात्पर्य है किसी विशेष समय में जनसंख्या में होने वाला शुद्ध परिवर्तन।
जनसंख्या वृद्धि की गणना
जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि की गणना इस प्रकार की जाती है:
[ \text{जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि} = (\text{जन्म} – \text{मृत्यु}) + (\text{अप्रवास} – \text{उत्प्रवास}) ]
जनसंख्या वृद्धिदर
जनसंख्या वृद्धिदर का तात्पर्य है किसी विशेष क्षेत्र में विशेष समयावधि में होने वाले जनसंख्या परिवर्तन को प्रतिशत में व्यक्त करना।
भारतीय जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियाँ
प्रावस्था 1 (1901-1921)
यह अवधि भारत की जनसंख्या की स्थिर वृद्धि की अवस्था है। इस दौरान जन्म और मृत्यु दर दोनों ऊँचे थे, जिससे वृद्धि दर अत्यंत कम रही।
प्रावस्था 2 (1921-1951)
इस अवधि में स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि के कारण मृत्यु दर में कमी आई। इसलिए इसे मृत्यु प्रेरित वृद्धि कहा जाता है।
प्रावस्था 3 (1951-1981)
इस अवधि को जनसंख्या विस्फोट की अवधि कहा जाता है। बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ, विकास कार्यों में तेजी और जीवन स्तर में सुधार के कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई।
प्रावस्था 4 (1981-आज)
इस अवधि में जनसंख्या वृद्धि दर में धीरे-धीरे कमी आ रही है। विवाह की औसत आयु में वृद्धि, महिलाओं की शिक्षा में सुधार और जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने इस कमी में योगदान दिया है।
जनसंख्या संघटन
जनसंख्या संघटन का तात्पर्य है जनसंख्या का आयु, लिंग, व्यवसाय आदि के आधार पर वर्णन।
भाषाई वर्गीकरण
भारत में बोली जाने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से चार परिवारों में बांटा जाता है:
- भारतीय-यूरोपीय (आर्य)
- द्रविड़
- आस्ट्रिक
- चीनी-तिब्बत
भाषाई परिवारों की विशेषताएँ
- भारतीय-यूरोपीय (आर्य): इस परिवार की भाषाएँ उत्तरी भारत में अधिक बोली जाती हैं। इसमें हिंदी प्रमुख है, जो कुल जनसंख्या का लगभग तीन चौथाई हिस्सा बोलता है।
- द्रविड़ भाषा परिवार: इस परिवार की भाषाएँ मुख्यतः प्रायद्वीपीय पठार में बोली जाती हैं। प्रमुख भाषाएँ तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं।
आर्थिक स्तर के दृष्टिकोण
भारत की जनसंख्या को तीन श्रेणियों में बाँ
टा जा सकता है:
- मुख्य श्रमिक: जो एक वर्ष में 183 दिन से अधिक काम करते हैं।
- सीमांत श्रमिक: जो 183 दिनों से कम काम करते हैं।
- अश्रमिक: जो बेरोजगार होते हैं या जिनका कोई स्थायी रोजगार नहीं होता।
श्रमिकों की श्रेणी में परिवर्तन
भारत में श्रमिकों की श्रेणी में समय के साथ परिवर्तन आया है। युवा वर्ग की बढ़ती संख्या और उनके बीच कौशल विकास के कार्यक्रमों के कारण यह परिवर्तन हुआ है।
किशोरों का योगदान
10-19 वर्ष की आयु के लोगों को किशोर कहा जाता है। यह वर्ग देश के भविष्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। किशोर वर्ग में अनेक प्रतिभाएं होती हैं जो देश के विकास में योगदान कर सकती हैं।
सरकार के कदम
भारत सरकार ने राष्ट्रीय युवा नीति 2003 लागू की, जिसका उद्देश्य युवाओं के विकास पर बल देना है। यह नीति किशोरों के समग्र विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए बनाई गई है।
समाज के समक्ष किशोरों की चुनौतियाँ
किशोरों के सामने कई चुनौतियाँ होती हैं, जैसे:
- निरक्षरता: अनेक किशोर आज भी शिक्षा से वंचित हैं, जो उनके विकास में बाधा डालता है।
- औषध दुरुपयोग: यह समस्या आज के समाज में तेजी से बढ़ रही है, जिससे किशोरों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
- मैरिज की निम्न आयु: कई क्षेत्रों में किशोरों की विवाह की औसत आयु कम है, जो उनके शिक्षा और विकास में रुकावट डालता है।
- समुचित मार्गदर्शन का अभाव: किशोरों के विकास में सही दिशा और मार्गदर्शन की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
भारत के आयु पिरामिड की विशेषताएँ
भारत में आयु पिरामिड की संरचना हमें यह बताती है कि विभिन्न आयु समूहों में कितनी जनसंख्या है। उच्च आयु वर्ग में पिरामिड संकरा होता है, जो यह दर्शाता है कि उच्चतम जनसंख्या का प्रतिशत युवा वर्ग में है।
आयु पिरामिड के गुण
- किशोरों की उच्च संख्या: 22% जनसंख्या 50 वर्ष की आयु तक पहुँचती है, जो भविष्य में देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- वृद्ध जनसंख्या: वृद्ध जनसंख्या का प्रतिशत धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जो सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
लिंग अनुपात में गिरावट के कारण
भारत में लिंग अनुपात में गिरावट एक गंभीर समस्या है। इसके पीछे कई कारण हैं:
- लड़कों के जन्म को प्राथमिकता: पारंपरिक सोच के कारण लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जाती है।
- कन्या भ्रूण हत्या: कन्या भ्रूण हत्या एक बहुत बड़ी समस्या है जो लिंग अनुपात को प्रभावित कर रही है।
- कुपोषण के कारण कन्या शिशुओं की मृत्यु: कई क्षेत्रों में कन्या शिशुओं के लिए पोषण की कमी भी लिंग अनुपात को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष
इस अध्याय में हमने जनसंख्या वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन के विभिन्न पहलुओं को समझा। इन मुद्दों का अध्ययन केवल भौगोलिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जनसंख्या के विभिन्न पहलुओं पर जागरूकता और समझ विकसित करना आवश्यक है ताकि हम एक स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकें।
इस प्रकार, जनसंख्या का अध्ययन न केवल सांस्कृतिक और सामाजिक आयामों का विश्लेषण करता है, बल्कि यह राष्ट्र की आर्थिक विकास योजनाओं और नीतियों में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में, जब विश्व तेजी से बदल रहा है, जनसंख्या अध्ययन की आवश्यकता और भी बढ़ गई है।