औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास (Sociology Class 12 Notes): इस अध्याय में हम औद्योगिक समाज के विकास और उसके परिणामों का गहन अध्ययन करेंगे। औद्योगीकरण की प्रक्रिया, भारत में औद्योगिक परिवर्तन, श्रमिक आंदोलनों, हड़तालों, और मजदूर संघों के महत्व पर चर्चा करेंगे। हम यह समझेंगे कि औद्योगिक समाज किस प्रकार बदल रहा है और इसके विभिन्न पहलुओं का समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 Notes |
Subject | Sociology (समाज शास्त्र) Part-2 |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास |
Category | कक्षा 12 Sociology नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
औद्योगीकरण की प्रक्रिया
औद्योगीकरण की परिभाषा
औद्योगीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन के तरीकों में बदलाव होता है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जिसमें कृषि पर निर्भरता कम होती है और मशीनों तथा तकनीकी उपकरणों का प्रयोग बढ़ता है। इस प्रक्रिया में मानव श्रम की तुलना में मशीनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जिससे उत्पादन की गति और मात्रा में वृद्धि होती है।
औद्योगीकरण का उद्देश्य
- उत्पादन में वृद्धि: औद्योगीकरण का प्रमुख उद्देश्य उत्पादन को बढ़ाना और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना है।
- नवीनतम तकनीकों का प्रयोग: औद्योगीकरण में नई तकनीकों का समावेश होता है, जो उत्पादन प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और सक्षम बनाती है।
- आर्थिक विकास: औद्योगीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।
भारत में औद्योगीकरण
प्रारंभिक औद्योगीकरण की स्थिति
भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया स्वतंत्रता के बाद तेजी से आगे बढ़ी। प्रारंभिक उद्योग जैसे कि जूट, कपास, और कोयला खदानें प्रमुख थे। ये उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव बने और रोजगार के कई अवसर प्रदान किए।
औद्योगिक क्षेत्र का विकास
1999-2000 में भारत की औद्योगिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। उस समय लगभग 60% लोग तृतीयक क्षेत्र में, 23% कृषि में, और 17% औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि कृषि कार्य में कमी आ रही है और औद्योगिक क्षेत्र की ओर प्रवृत्ति बढ़ रही है।
औपचारिक और असंगठित क्षेत्र
भारत में औद्योगिक क्षेत्र को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
- औपचारिक क्षेत्र: जिसमें 10 या अधिक लोग काम करते हैं और जिसमें स्थायी रोजगार, पेंशन, और अन्य लाभ शामिल होते हैं।
- असंगठित क्षेत्र: इस क्षेत्र में लोग अक्सर अस्थायी रोजगार में लगे होते हैं, जहाँ उन्हें स्थायी नौकरी के लाभ नहीं मिलते। भारत की लगभग 90% जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है।
भारतीय औद्योगिक नीति
औद्योगिक नीति का विभाजन
1956 की औद्योगिक नीति के अनुसार, भारतीय उद्योगों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:
- प्राथमिक श्रेणी: इसमें रक्षा, रेलवे, और ऊर्जा संबंधित उद्योग शामिल हैं।
- माध्यमिक श्रेणी: इसमें मशीन टूल्स, फार्मास्यूटिकल्स, और जल परिवहन जैसे उद्योग आते हैं।
- तृतीयक श्रेणी: इसमें निजी क्षेत्र के लिए उद्योग शामिल हैं, जिन्हें सरकारी सहायता प्राप्त होती है।
प्रारंभिक औद्योगीकरण में चुनौतियाँ
भारत के औद्योगीकरण की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ आईं। इनमें औद्योगिक आधारभूत संरचना की कमी, पूंजी की कमी, और तकनीकी ज्ञान का अभाव शामिल थे। ये सभी कारक भारत के औद्योगिक विकास में बाधा डालते रहे।
भूमंडलीकरण और उदारीकरण
भूमंडलीकरण की अवधारणा
भूमंडलीकरण एक ऐसा प्रक्रिया है जिसमें दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ आपस में जुड़ती हैं। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के माध्यम से होता है। भारत में 1990 के दशक में उदारीकरण की नीति अपनाई गई, जिसने अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उदारीकरण का प्रभाव
उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय उद्योगों में कई परिवर्तन हुए:
- आमदनी में असमानता: उदारीकरण ने समृद्धि को बढ़ाया लेकिन साथ ही आमदनी में असमानता भी लाई।
- विस्थापन: कई किसान और आदिवासी लोग भूमि से विस्थापित हो गए।
- नौकरी की सुरक्षा: बड़े उद्योगों में स्थायी रोजगार की कमी हो गई।
उदारीकरण की विशेषताएँ
- उद्योगों को लाइसेंस मुक्त करना।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- सरकारी नियंत्रण को कम करना।
संरक्षणवाद और व्यावसायीकरण
संरक्षणवाद
संरक्षणवाद एक ऐसी नीति है जिसमें स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विदेशी व्यापार पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। यह नीति देश के आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिए अपनाई जाती है।
व्यावसायीकरण
व्यावसायीकरण किसी उत्पाद या सेवा को बाजार में आर्थिक मूल्य देने की प्रक्रिया है। यह उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें लाभ कमाने की अनुमति देता है और नए बाजारों को खोलता है।
विकेंद्रीकरण और कार्यस्थल
विकेंद्रीकरण की अवधारणा
विकेंद्रीकरण का अर्थ है निर्णय लेने की प्रक्रिया को स्थानीय स्तर पर स्थानांतरित करना। यह स्थानीय निकायों को संसाधनों और निर्णय लेने की शक्तियों का वितरण करता है।
कार्य की स्थिति
सरकार ने कार्य की स्थितियों को सुधारने के लिए कई कानून बनाए हैं, जैसे खदान अधिनियम 1952, जो श्रमिकों की सुरक्षा और कल्याण के लिए आवश्यक है।
घरेलू काम और श्रमिक संघ
घरेलू कार्य
घर में कई काम जैसे बीड़ी बनाना, जरी का काम, और अन्य छोटे उद्योगों में महिलाएँ और बच्चे काम करते हैं। ये कार्य अक्सर असंगठित होते हैं और इसमें श्रमिकों को उचित मुआवजा नहीं मिलता।
मजदूर संघ
मजदूर संघ का गठन कामगारों के हितों की रक्षा के लिए किया जाता है। ये संघ कामगारों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं।
हड़ताल
कर्मचारी अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल करते हैं। यह औद्योगिक संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करता है।
तालाबंदी
तालाबंदी का मतलब है जब मिल मालिक अपनी फैक्ट्री के दरवाजों पर ताला लगाते हैं, जिससे कामगारों को काम करने से रोका जाता है। यह स्थिति कामगारों के लिए अत्यंत कठिनाईपूर्ण होती है।
हड़ताल और तालाबंदी का अध्ययन
1982 में बंबई की कपड़ा मिल में हुई हड़ताल एक उदाहरण है, जिसमें लगभग 250,000 कामगारों के परिवार प्रभावित हुए थे। उनकी मांगें बेहतर मजदूरी और संघ बनाने की अनुमति थीं। इस प्रकार की घटनाएँ औद्योगिक संघर्षों की जटिलताओं को उजागर करती हैं।
निष्कर्ष
औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया एक बहुआयामी है। यह न केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करती है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डालती है। औद्योगीकरण के साथ आई चुनौतियों और अवसरों को समझना आवश्यक है, ताकि हम एक समृद्ध और समान समाज की दिशा में आगे बढ़ सकें। औद्योगिक समाज का विकास, उसके संगठनात्मक ढाँचे, श्रमिक आंदोलनों और सामाजिक बदलावों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है, जिसे हमें समझने की आवश्यकता है।