संरचनात्मक परिवर्तन (Sociology Class 12 Notes): समाज में समय के साथ होने वाले परिवर्तन को समझने के लिए “संरचनात्मक परिवर्तन” का अध्ययन करना आवश्यक है। यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो न केवल समाज की आंतरिक संरचना को प्रभावित करती है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं पर भी गहरा असर डालती है। इस अध्याय में हम उपनिवेशवाद, पूँजीवाद, औद्योगीकरण, प्रवास, संस्कृतिकरण, चाय की बागवानी, स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण, और शहरीकरण जैसे विषयों पर चर्चा करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 Notes |
Subject | Sociology (समाज शास्त्र) Part-2 |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | संरचनात्मक परिवर्तन |
Category | कक्षा 12 Sociology नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |

संरचनात्मक परिवर्तन
परिभाषा
संरचनात्मक परिवर्तन से तात्पर्य है समाज की मूल संरचना में परिवर्तन। यह परिवर्तन तब होता है जब समाज की संस्थाएँ, नियम, या परंपराएँ बदलने लगती हैं। उदाहरण के लिए, प्राचीन काल में व्यापार का एक प्रमुख तरीका वस्तु के बदले वस्तु का आदान-प्रदान था, जबकि आज के युग में यह धन के माध्यम से होता है। इस प्रकार का परिवर्तन समाज के विकास और उसकी गतिशीलता का प्रतीक है।
प्रकार
संरचनात्मक परिवर्तन को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- आर्थिक परिवर्तन: जैसे कि औद्योगीकरण या व्यापार की नई प्रणालियाँ।
- सांस्कृतिक परिवर्तन: जैसे कि नई सांस्कृतिक मान्यताओं का उदय।
- राजनीतिक परिवर्तन: जैसे कि शासन प्रणाली में बदलाव।
उपनिवेशवाद
परिभाषा
उपनिवेशवाद वह प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश दूसरे देश पर शासन करता है। यह शासन आमतौर पर आर्थिक लाभ के लिए होता है। भारतीय उपनिवेशवाद में ब्रिटिश साम्राज्य ने समाज की संरचना और संस्कृति में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
भारत में उपनिवेशवाद के प्रभाव
आर्थिक प्रभाव
ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया। यह हस्तक्षेप केवल व्यापार तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने उत्पादन और वितरण की प्रक्रियाओं को भी प्रभावित किया। उदाहरण के लिए, चाय की खेती का विकास और कई नए उद्योगों का उदय।
सामाजिक प्रभाव
उपनिवेशवाद ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था और वर्ग संरचना को भी प्रभावित किया। नई शिक्षा प्रणाली और चिकित्सा सेवाओं का विकास हुआ, जिसने एक नई सामाजिक वर्ग का निर्माण किया।
सांस्कृतिक प्रभाव
ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को भारत में लाने का कार्य किया। इससे एक ऐसा वर्ग विकसित हुआ जो उपनिवेश के साथ सहयोग करता था। इसके अलावा, अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी बढ़ा, जिससे भारतीयों के लिए नए अवसर उत्पन्न हुए।
पूँजीवाद
परिभाषा
पूँजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों या कंपनियों के हाथ में होता है। इसमें लाभ कमाने की प्रेरणा प्रमुख होती है।
भारत में पूँजीवाद का विकास
भारत में पूँजीवाद का विकास उपनिवेशवाद के साथ-साथ हुआ। इसके कई परिणाम हुए:
- व्यापार में वृद्धि: विभिन्न उद्योगों का विकास और नए व्यापारिक संबंध स्थापित हुए।
- सामाजिक परिवर्तन: नई आर्थिक व्यवस्थाओं के कारण समाज में नए वर्गों का उदय हुआ।
औद्योगीकरण
परिभाषा
औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया मानवीय श्रम के स्थान पर तकनीक पर आधारित होती है।
औद्योगीकरण के प्रभाव
आर्थिक प्रभाव
औद्योगीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव किया। नए उद्योगों का उदय हुआ, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा हुए।
सामाजिक प्रभाव
औद्योगिक समाजों में लोगों का एक बड़ा हिस्सा कारखानों और ऑफिसों में काम करने लगा। इससे पारंपरिक कृषि आधारित जीवनशैली में बदलाव आया।
प्रवास
परिभाषा
प्रवास का अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की प्रक्रिया, जो आमतौर पर काम की तलाश में होती है।
प्रवास के कारण
- आर्थिक अवसर: बेहतर रोजगार की खोज।
- सामाजिक कारण: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश।
संस्कृतिकरण
परिभाषा
संस्कृतिकरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा निम्न जातियाँ ऊँची जातियों के संस्कारों और परंपराओं को अपनाकर सामाजिक गतिशीलता चाहती हैं।
संस्कृतिकरण के प्रभाव
- सामाजिक समरसता: विभिन्न जातियों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा मिला।
- सांस्कृतिक समृद्धि: नई सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का उदय हुआ।
शहरीकरण
परिभाषा
शहरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा ग्रामीण जनसंख्या शहरों में स्थानांतरित होती है। यह प्रक्रिया जनसंख्या के वितरण और जीवनशैली को बदलती है।
शहरीकरण के कारण
- औद्योगीकरण: उद्योगों का विकास और इसके कारण रोजगार के नए अवसर।
- प्रवासन: गाँवों से शहरों में काम की तलाश में लोगों का आना।
चाय की बागवानी
चाय की बागवानी का इतिहास
चाय की बागवानी का उदय ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय हुआ। इसका उद्देश्य ब्रिटेन को चाय की आपूर्ति करना था।
श्रमिकों की स्थिति
मजदूरों को बागानों में काम करने के लिए अनुबंधित किया गया, लेकिन उनकी स्थिति अत्यंत कठिन थी। उन्हें कम वेतन पर काम करना पड़ता था और उनके जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होता था।
स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण
औद्योगीकरण की दिशा
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने औद्योगीकरण को प्राथमिकता दी। स्वदेशी आंदोलन और राष्ट्रीय नीतियों ने औद्योगिक विकास को गति दी।
औद्योगिक नीति
भारत सरकार ने भारी उद्योगों को विकसित करने की दिशा में कई योजनाएँ बनाई।
स्वतंत्र भारत में नगरीकरण
नगरीकरण का महत्व
स्वतंत्र भारत में नगरीकरण ने शहरों की वृद्धि को तेज किया।
नगरीकरण के प्रभाव
- जनसंख्या वृद्धि: शहरों में जनसंख्या की वृद्धि हुई।
- सामाजिक परिवर्तन: शहरी जीवनशैली का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ा।
एम.एस.ए. राव के अनुसार गाँवों पर नगरों का प्रभाव
- गाँवों में परिवर्तन
कई गाँवों में लोग रोज़गार के लिए शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।
- सामाजिक समरसता
महानगरों का उदय और विकास गाँवों पर भी प्रभाव डाल रहा है। कुछ गाँवों का अस्तित्व नगरीय विकास के कारण कमजोर हो गया है।
निष्कर्ष
संरचनात्मक परिवर्तन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उपनिवेशवाद, पूँजीवाद, औद्योगीकरण, प्रवास, संस्कृतिकरण, चाय की बागवानी, और शहरीकरण जैसे विभिन्न तत्व शामिल होते हैं। इन सभी पहलुओं का भारतीय समाज पर गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। समाज की विकास यात्रा को समझने के लिए इन परिवर्तनों का अध्ययन करना अनिवार्य है।
इस अध्याय ने हमें यह समझने में मदद की है कि किस प्रकार समाज में हो रहे ये संरचनात्मक परिवर्तन हमें एक नई दिशा में ले जा रहे हैं, और ये परिवर्तन न केवल वर्तमान परिदृश्य को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि भविष्य की संभावनाओं को भी आकार दे रहे हैं।