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बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में – JAC Class 12 Sociology Chapter 4 Notes

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बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में (Sociology Class 12 Notes): बाजार केवल वस्तुओं का व्यापार करने का स्थान नहीं है, बल्कि यह समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी समाहित करता है। अध्याय 4 में हम बाजार के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिसमें बाजार की परिभाषा, साप्ताहिक बाजार, ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार की भूमिका, अदृश्य हाथ, जजमानी प्रथा, मुक्त बाजार, पण्यीकरण, भूमंडलीकरण और उदारीकरण जैसे महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं।

TextbookNCERT
ClassClass 12 Notes
SubjectSociology (समाज शास्त्र)
ChapterChapter 4
Chapter Nameबाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में
Categoryकक्षा 12 Sociology नोट्स
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बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में – JAC Class 12 Sociology Chapter 4 Notes

बाजार की परिभाषा

बाजार वह स्थान है जहाँ वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है। यह एक आर्थिक तंत्र के रूप में कार्य करता है, लेकिन यह एक सामाजिक संस्था भी है। बाजार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संबंध स्थापित करता है। इससे न केवल व्यापार होता है, बल्कि सामाजिक संपर्क भी होता है, जो एक समुदाय को जोड़ता है।

बाजार का महत्व

बाजार का महत्व केवल आर्थिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है। यह समाज के लिए एक आवश्यक तत्व है, जो लोगों के बीच बातचीत और संबंधों को बढ़ावा देता है। बाजार की उपस्थिति से स्थानीय संस्कृति को भी बढ़ावा मिलता है, क्योंकि यह स्थानीय उत्पादों और सेवाओं को प्रोत्साहित करता है।

साप्ताहिक बाजार

साप्ताहिक बाजार एक विशेष प्रकार का बाजार है, जो सप्ताह में एक बार आयोजित होता है। ये बाजार छोटे नगरों और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुखता से देखने को मिलते हैं। यहाँ उपभोक्ता अपनी दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ जैसे सब्जियाँ, फल और अन्य घरेलू सामान खरीदते हैं।

साप्ताहिक बाजार की संरचना

साप्ताहिक बाजार की संरचना बहुत ही दिलचस्प होती है। यहाँ विभिन्न प्रकार के विक्रेता एकत्र होते हैं, जो अपनी वस्तुएँ बेचते हैं। यह बाजार न केवल आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है, बल्कि यह सामाजिक मेल-मिलाप का भी एक स्थान है। यहाँ लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, बात करते हैं और अपने संबंधों को मजबूत करते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में साप्ताहिक बाजार

ग्रामीण क्षेत्रों में साप्ताहिक बाजार का महत्व और भी अधिक है। यहाँ के लोग अपनी उपज को बेचने के लिए आते हैं और अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं। ये बाजार ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जो न केवल आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों को भी बढ़ावा देते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार

ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार की विशेषताएँ भी महत्वपूर्ण हैं। यहाँ बाजार हाट और मेले के रूप में सजते हैं, जहाँ ग्रामीण अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएँ खरीदते हैं। ये बाजार एक सामाजिक मिलन स्थल भी होते हैं।

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हाट और मेले

हाट और मेले स्थानीय संस्कृति का हिस्सा होते हैं। ये विशेष अवसर होते हैं जहाँ ग्रामीण अपनी वस्तुएँ बेचने और खरीदने के लिए एकत्र होते हैं। इसके अलावा, यहाँ पर सामाजिक गतिविधियाँ भी होती हैं, जैसे विवाह तय करना, रिश्तेदारों से मिलना और गपशप करना।

सामाजिक भूमिका

ग्रामीण बाजारों की सामाजिक भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये बाजार सामाजिक संबंधों को मजबूत करते हैं और समुदाय के लोगों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देते हैं। लोग यहाँ केवल वस्तुएँ खरीदने नहीं, बल्कि एक-दूसरे से मिलकर अपने जीवन के अनुभव साझा करने भी आते हैं।

अदृश्य हाथ

अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने “अदृश्य हाथ” की अवधारणा को प्रस्तुत किया, जो बाजार के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस अवधारणा के अनुसार, हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए कार्य करता है, और इस प्रक्रिया में वह समाज के हित में भी कार्य करता है।

अदृश्य हाथ की कार्यप्रणाली

बाजार में हर व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने के लिए विचार करता है। जब लोग अपने व्यक्तिगत हितों का ध्यान रखते हैं, तो वे एक साथ मिलकर समाज के लिए भी सकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार, अदृश्य हाथ एक ऐसी शक्ति है जो समाज के विकास में मदद करती है।

जजमानी प्रथा

जजमानी प्रथा एक पारंपरिक व्यवस्था है, जिसमें छोटे लोग बड़े लोगों की सेवा करते हैं। यह प्रथा आज भी कुछ क्षेत्रों में देखी जाती है। जजमानी प्रथा का अर्थ है सेवा भाव से काम करना, जिसमें मजदूरी बहुत कम होती है।

जजमानी प्रथा का सामाजिक महत्व

जजमानी प्रथा सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करती है। यह बड़े और छोटे वर्गों के बीच संबंधों को स्थापित करती है। इसके माध्यम से छोटे लोग अपने जीवन यापन के लिए बड़े लोगों पर निर्भर रहते हैं, जबकि बड़े लोग छोटे लोगों की सेवाओं का लाभ उठाते हैं।

मुक्त बाजार

मुक्त बाजार वह बाजार है जहाँ सभी प्रकार के नियमों से स्वतंत्रता होती है। इसे फ्रेंच में “लेसेज़-फेयर” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “अकेला छोड़ दो”।

मुक्त बाजार की विशेषताएँ

मुक्त बाजार में विक्रेता और ग्राहक अपनी इच्छानुसार वस्तुओं का व्यापार कर सकते हैं। यहाँ पर सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है। इससे व्यापार की स्वतंत्रता बढ़ती है और प्रतिस्पर्धा में भी वृद्धि होती है।

मुक्त बाजार का प्रभाव

मुक्त बाजार का प्रभाव समाज पर भी पड़ता है। यह उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प देता है और उन्हें अपनी पसंद के अनुसार सामान खरीदने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इससे समाज में विविधता भी बढ़ती है।

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बाजार के सामाजिक पहलू

बाजार को एक सामाजिक संस्था के रूप में देखा जाता है, जो विशेष सांस्कृतिक तरीके से निर्मित होती है। बाजारों का नियंत्रण या संगठन विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा किया जाता है।

सामाजिक समूहों का प्रभाव

बाजार में विभिन्न सामाजिक समूहों की भागीदारी होती है। ये समूह अपने-अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के आधार पर बाजार को आकार देते हैं। इससे बाजार की संरचना और कार्यप्रणाली में विविधता आती है।

बाजार और संस्कृति

बाजार समाज की सांस्कृतिक पहचान को भी प्रदर्शित करता है। यहाँ पर स्थानीय उत्पादों, परंपराओं और रिवाजों का सम्मान होता है। यह बाजार स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

जनजातीय साप्ताहिक बाजार

जनजातीय साप्ताहिक बाजार भी विशेष महत्व रखते हैं। ये बाजार आसपास के गाँवों के लोगों को एकत्रित करते हैं, जहाँ वे अपनी खेती की उपज बेचने के लिए आते हैं।

सामाजिक मेल-मिलाप

इन बाजारों में न केवल आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं, बल्कि सामाजिक मेल-मिलाप भी महत्वपूर्ण होता है। लोग यहाँ पर आपस में बातचीत करते हैं, संबंध बनाते हैं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को साझा करते हैं।

साहूकार और अन्य लोग

जनजातीय बाजारों में साहूकार, मसखरे और ज्योतिषी भी आते हैं। यह बाजार एक ऐसा स्थान बन जाता है जहाँ विभिन्न प्रकार के लोग एकत्रित होते हैं और अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते हैं।

उपनिवेशिक भारत में बाजार

उपनिवेशिक भारत में बाजारों का स्वरूप और कार्यप्रणाली में बदलाव आया। उपनिवेशवाद ने भारतीय अर्थव्यवस्था में कई परिवर्तन किए, जिससे बाजारों का विकास हुआ।

उपनिवेशिकता का प्रभाव

उपनिवेशिकता के दौरान भारतीय बाजारों में नया व्यापारिक तंत्र विकसित हुआ। इससे उत्पादन, व्यापार और कृषि में बड़े बदलाव आए। भारतीय अर्थव्यवस्था का मौद्रीकरण भी इसी अवधि में हुआ।

पारंपरिक व्यापारिक समुदाय

भारत के पारंपरिक व्यापारिक समुदाय जैसे वैश्य, पारसी, सिन्धी और जैन ने बाजारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन समुदायों के पास अपनी कर्ज और बैंक व्यवस्था थी, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला।

पण्यीकरण (वस्तुकरण)

पण्यीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें कोई वस्तु बाजार में खरीदी और बेची जा सकती है। पहले वस्तुएं केवल उपयोग के लिए होती थीं, लेकिन अब श्रम, कौशल और यहां तक कि मानव अंगों को भी बाजार में बेचा जा सकता है।

पण्यीकरण का सामाजिक प्रभाव

पण्यीकरण ने समाज में कई बदलाव लाए हैं। यह उपभोक्ताओं को वस्तुओं के रूप में देखता है और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। इसके कारण लोगों के बीच की मूल्यांकन की प्रक्रिया भी बदल गई है।

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उपभोग

उपभोग का अर्थ है उपभोक्ता अपनी सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक स्थिति के अनुसार विशेष वस्तुओं को खरीदना। आजकल विज्ञापनों का भी उपभोक्ता की पसंद पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

उपभोक्ता का चयन

उपभोक्ता की पसंद और प्राथमिकताएँ उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। उपभोक्ता अपने खाने, पहनने और रहने के लिए वस्तुएँ खरीदता है,

जो उसकी सामाजिक स्थिति का भी प्रतीक होती हैं।

भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ती है। इसके पीछे कई आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी कारण होते हैं।

भूमंडलीकरण के लाभ

भूमंडलीकरण ने सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक गाँव में बदल दिया है। अब वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी के लिए आभासी बाजार का प्रचलन बढ़ रहा है।

आभासी बाजार

आभासी बाजार इंटरनेट और वेबसाइटों के माध्यम से वस्तुओं की खरीदारी करने का एक तरीका है। यहाँ पर खरीदार और विक्रेता दोनों ही भौतिक रूप से उपस्थित नहीं होते, जिससे व्यापार का तरीका बदल गया है।

उदारीकरण

उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकारी नियंत्रण कम होता है और निजीकरण को बढ़ावा दिया जाता है। इसके अंतर्गत विदेशी वस्तुओं के आयात शुल्क में कमी, विदेशी कंपनियों को उद्योग स्थापित करने की अनुमति आदि शामिल हैं।

उदारीकरण के लाभ

उदारीकरण के कई लाभ हैं, जैसे:

  • विदेशी वस्तुओं की उपलब्धता
  • विदेशी निवेश में वृद्धि
  • आर्थिक विकास और रोजगार में वृद्धि

उदारीकरण की चुनौतियाँ

हालांकि उदारीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। भारतीय उद्योग विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते, जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है।

समर्थन मूल्य और सब्सिडी

सरकार किसानों की उपज का न्यूनतम मूल्य (समर्थन मूल्य) सुनिश्चित करती है, जिसे किसानों के हित में घोषित किया जाता है। इसके अलावा, सब्सिडी भी सरकार द्वारा दी जाती है, जैसे उर्वरकों, डीजल और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर।

समर्थन मूल्य का महत्व

समर्थन मूल्य किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करता है, जिससे वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रह सकते हैं। यह उनकी मेहनत का उचित मूल्यांकन करता है।

सब्सिडी का प्रभाव

सरकारी सब्सिडी से किसानों को उनकी लागत कम करने में मदद मिलती है। इससे किसानों को अधिक लाभ होता है और कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

बाजार केवल एक आर्थिक संस्था नहीं है, बल्कि यह समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सामाजिक संबंधों, सांस्कृतिक गतिविधियों और आर्थिक विकास को एक साथ जोड़ता है। साप्ताहिक बाजार, जनजातीय बाजार, मुक्त बाजार, पण्यीकरण, भूमंडलीकरण, उदारीकरण और अन्य पहलुओं के माध्यम से बाजार की सामाजिक भूमिका का स्पष्ट चित्रण होता है। इसलिए, बाजार को एक सामाजिक संस्था के रूप में समझना आवश्यक है, ताकि हम इसके महत्व और प्रभाव को सही तरीके से समझ सकें।

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