सत्ता के समकालीन केंद्र (Political Science Class 11 Notes): राजनीतिक विज्ञान का यह अध्याय समकालीन विश्व में सत्ता के केंद्रों का विश्लेषण करता है। हम देखेंगे कि कैसे वैश्विक राजनीति में विभिन्न देश और क्षेत्रीय संगठन एक नए प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं। अमेरिका का वर्चस्व अब कई संगठनों और देशों के माध्यम से चुनौती दी जा रही है। इस अध्याय में हम यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क और ब्रिक्स जैसे संगठनों का अवलोकन करेंगे, साथ ही रूस, चीन, भारत, जापान, इज़राइल और दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख देशों की भूमिका को भी समझेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 12 Notes |
Subject | Political Science (राजनीति विज्ञान) |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | सत्ता के समकालीन केंद्र |
Category | कक्षा 12 Political Science नोट्स |
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Official Website | JAC Portal |
सत्ता के समकालीन केंद्र
नए केंद्र का अर्थ
सोवियत संघ के विघटन के बाद, अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रमुखता हासिल की। इस दौरान कुछ अन्य देशों और संगठनों ने भी अपनी पहचान बनानी शुरू की। ये नए केंद्र न केवल अमेरिका के प्रभाव को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर एक सामूहिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे संगठन और देश अब अमेरिका की एकध्रुवीयता के खिलाफ विकल्प के रूप में उभर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विश्व राजनीति में अब एक बहुध्रुवीयता की दिशा में परिवर्तन आ रहा है।
क्षेत्रीय संगठन
क्षेत्रीय संगठन स्वैच्छिक समुदायों का एक समूह होते हैं, जो विशेष रूप से किसी निश्चित क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक सहयोग के लिए गठित होते हैं। प्रमुख क्षेत्रीय संगठनों में शामिल हैं:
- यूरोपीय संघ (EU)
- आसियान (ASEAN)
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क)
- ब्रिक्स (BRICS)
इन संगठनों का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सहयोग, एकता, और विकास को बढ़ावा देना है, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
यूरोपीय संघ (EU)
स्थापना और विकास
यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में मास्ट्रिच्ट संधि के माध्यम से हुई। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करना है। इसके पूर्ववर्ती संगठनों में यूरोपीय आर्थिक समुदाय और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय शामिल थे, जिन्हें 1957 में स्थापित किया गया था।
यूरोपीय संघ के उद्देश्य
यूरोपीय संघ के प्रमुख उद्देश्य हैं:
- एक समान विदेश और सुरक्षा नीति का विकास।
- आंतरिक मामलों में सहयोग।
- सदस्य देशों के बीच वीजा मुक्त आवागमन की सुविधा।
- आर्थिक समृद्धि और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना।
विशेषताएँ और ताकत
यूरोपीय संघ अब केवल एक आर्थिक समुदाय नहीं रह गया है, बल्कि यह एक शक्तिशाली राजनीतिक संगठन में बदल चुका है। इसके पास अपने झंडे, गान, और मुद्रा (यूरो) है। इसकी सदस्य देशों की संख्या वर्तमान में 27 है, जो इसे एक मजबूत संघ बनाती है।
- आर्थिक शक्ति: 2005 में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसकी आर्थिक शक्ति विश्व व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- सामूहिक रक्षा: इसके पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है, और इसका रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है।
कमजोरियाँ
हालांकि, यूरोपीय संघ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:
- सदस्य देशों की अलग-अलग विदेश नीति, जो कई बार आपस में विरोधाभासी होती है।
- कुछ देशों में यूरो मुद्रा को लेकर नाराजगी।
- ब्रेक्जिट, जिसमें ब्रिटेन ने 2016 में जनमत संग्रह के माध्यम से संघ से अलग होने का निर्णय लिया।
आसियान (ASEAN)
स्थापना और उद्देश्य
आसियान, जिसका पूरा नाम “दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन” है, 1967 में स्थापित हुआ। इसके संस्थापक देश हैं: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, और थाईलैंड। बाद में ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, और कंबोडिया भी इसमें शामिल हुए।
आसियान के उद्देश्य
आसियान का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक विकास, सामाजिक समृद्धि, और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। इसके प्रमुख लक्ष्यों में शामिल हैं:
- आर्थिक विकास में तेजी लाना।
- सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- कानून के शासन का पालन करते हुए क्षेत्रीय शांति सुनिश्चित करना।
आसियान की विशेषताएँ
आसियान ने एक अनौपचारिक और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया है, जिसे ‘आसियान शैली’ कहा जाता है। इसके मुख्य स्तंभ हैं:
- आसियान सुरक्षा समुदाय: यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है।
- आसियान आर्थिक समुदाय: इसका उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय: यह बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
सार्क (SAARC)
स्थापना और उद्देश्य
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) की स्थापना 1985 में हुई। इसके सदस्य देश हैं: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, और मालदीव। सार्क का उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।
सार्क के उद्देश्य
- सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाना।
- क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करना।
- साझा विकास परियोजनाओं को लागू करना।
सार्क की चुनौतियाँ
सार्क को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि राजनीतिक मतभेद, सांस्कृतिक भिन्नताएँ, और आर्थिक विषमताएँ। इन समस्याओं के कारण सार्क का विकास बाधित हो रहा है।
ब्रिक्स (BRICS)
ब्रिक्स का गठन
ब्रिक्स एक समूह है जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। यह संगठन विकासशील देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गठित हुआ था।
ब्रिक्स के उद्देश्य
ब्रिक्स का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों के बीच सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देना है। यह संगठन वैश्विक स्तर पर आर्थिक संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है।
ब्रिक्स की विशेषताएँ
ब्रिक्स ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके सदस्य देश न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी एक दूसरे के निकट आ रहे हैं।
प्रमुख देशों की भूमिका
रूस और चीन
रूस और चीन ने वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है। रूस अपनी ऊर्जा संसाधनों की शक्ति और सैन्य ताकत के लिए जाना जाता है, जबकि चीन की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था इसे एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर रही है।
भारत
भारत एक तेजी से उभरती हुई शक्ति है, जो वैश्विक मामलों में सक्रियता से शामिल हो रहा है। इसकी आर्थिक वृद्धि, सामरिक ताकत, और राजनीतिक स्थिरता इसे एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है।
जापान और दक्षिण कोरिया
जापान और दक्षिण कोरिया तकनीकी और औद्योगिक क्षेत्रों में अग्रणी हैं। ये देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और उनके पास उच्च तकनीक वाले उद्योग हैं।
निष्कर्ष
इस अध्याय से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक राजनीति में बदलाव आ रहा है। अमेरिका का वर्चस्व अब अन्य देशों और संगठनों के माध्यम से चुनौती दी जा रही है। यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क, और ब्रिक्स जैसे क्षेत्रीय संगठन और प्रमुख देश जैसे चीन, रूस, और भारत, सत्ता के नए केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं।
यह बदलाव वैश्विक राजनीति में एक नई बहुध्रुवीयता की दिशा में संकेत करता है, जो भविष्य में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को आकार देगा। इन संगठनों और देशों की भूमिका, वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक विकास, और राजनीतिक स्थिरता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन परिवर्तनों को समझें और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयारी करें।