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समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व – JAC Class 12 Political Science Chapter 3 Notes

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समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व (Political Science Class 11 Notes): शीत युद्ध का दौर एक ऐसा ऐतिहासिक काल है जो अमेरिका और सोवियत संघ के बीच की राजनीतिक, आर्थिक, और विचारधारात्मक प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है। यह संघर्ष 1945 से लेकर 1991 तक चला, जब तक कि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ। शीत युद्ध का मतलब है कि दो या दो से अधिक देशों के बीच ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसमें युद्ध का खतरा बना रहता है, लेकिन वास्तविक युद्ध नहीं होता। इस दौर में तनाव, भय, और संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी, लेकिन युद्ध का कोई वास्तविक रूप नहीं था।

TextbookNCERT
ClassClass 12 Notes
SubjectPolitical Science (राजनीति विज्ञान)
ChapterChapter 3
Chapter Nameसमकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व
Categoryकक्षा 12 Political Science नोट्स
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Official WebsiteJAC Portal
समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व – JAC Class 12 Political Science Chapter 3 Notes

कक्षा 12 के राजनीतिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में “समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व” एक महत्वपूर्ण विषय है। इस अध्याय के माध्यम से हम अमेरिका की वैश्विक भूमिका, उसकी शक्ति के स्रोत, और उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों को समझने का प्रयास करेंगे। इस नोट्स में हम अमेरिकी वर्चस्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उसके द्वारा चलाए गए प्रमुख सैन्य अभियान, और वैश्विक राजनीति में उसके प्रभाव पर चर्चा करेंगे।

नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत

सोवियत संघ का विघटन

1991 में सोवियत संघ का विघटन शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था। इसके साथ ही अमेरिकी वर्चस्व का आगाज हुआ, जिससे विश्व राजनीति का स्वरूप एकध्रुवीय हो गया। इस स्थिति ने अमेरिका को वैश्विक मंच पर एक मुख्य शक्ति के रूप में स्थापित किया।

इराक पर आक्रमण

अगस्त 1990 में इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया, जिसके बाद अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सैन्य बल प्रयोग की अनुमति मिली। यह निर्णय न केवल अमेरिका की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अमेरिका अब अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इस पूरे घटनाक्रम को “नई विश्व व्यवस्था” की स्थापना के रूप में पेश किया।

वर्चस्व (हेजेमनी) का अर्थ

वर्चस्व का अर्थ है विभिन्न क्षेत्रों में, जैसे सैन्य, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक, एकमात्र शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित होना। अमेरिकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई, जब सोवियत संघ का पतन हुआ और अमेरिका ने अपने आप को एक नई शक्ति के रूप में स्थापित किया।

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अमेरिकी वर्चस्व की पृष्ठभूमि

अमेरिकी वर्चस्व 1945 से ही धीरे-धीरे विकसित हो रहा था, लेकिन सोवियत संघ के विघटन ने इसे एक नए स्तर पर पहुँचाया। अब अमेरिका वैश्विक मामलों में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार था।

प्रथम खाड़ी युद्ध

युद्ध की पृष्ठभूमि

1990 में इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण के बाद, अमेरिका ने 34 देशों के साथ मिलकर इराक के खिलाफ एक बड़ा सैन्य अभियान चलाया। यह युद्ध “प्रथम खाड़ी युद्ध” के नाम से जाना जाता है।

ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म

संयुक्त राष्ट्र ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए अमेरिका को सैन्य बल प्रयोग की अनुमति दी, जिसे “ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म” कहा गया। यह अभियान पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि इससे पता चला कि अमेरिका न केवल एक सैन्य शक्ति है, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करने में भी सक्रिय रूप से शामिल है।

युद्ध की विशेषताएँ

इस युद्ध में अमेरिका ने “स्मार्ट बमों” का प्रयोग किया, जिसे कुछ पर्यवेक्षकों ने “कंप्यूटर युद्ध” कहा। इस युद्ध का व्यापक कवरेज किया गया, जिससे इसे “वीडियो गेम वॉर” के रूप में भी जाना गया। इस युद्ध में अमेरिका की सैन्य क्षमता अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक थी।

बिल क्लिंटन का राष्ट्रपति काल

राष्ट्रपति चुनाव और नीतियाँ

1992 में, बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उनके कार्यकाल (1993-2001) के दौरान, उन्होंने घरेलू मामलों को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए काम किया।

महत्वपूर्ण घटनाएँ

उनकी नीतियों में जलवायु परिवर्तन, विश्व व्यापार, और मानवाधिकार जैसे नरम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसके साथ ही, उन्होंने अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत किया।

अमेरिकी दूतावास पर हमले

आतंकवादी हमले

1998 में, केन्या और तंजानिया में स्थित अमेरिकी दूतावास पर आतंकवादी हमले हुए। इन हमलों की जिम्मेदारी “अल-कायदा” ने ली।

जवाबी कार्रवाई

बिल क्लिंटन ने इन हमलों के जवाब में “ऑपरेशन इनफाइनाइट रिच” का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सूडान और अफगानिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर “क्रूज मिसाइल” से हमला किया।

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9/11 की घटना

आतंकवादी हमले का वर्णन

11 सितंबर 2001 को, अल-कायदा के 19 आतंकियों ने अमेरिका के चार व्यवसायिक विमानों का अपहरण किया। दो विमानों ने न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टावरों से टकराया, जबकि तीसरा विमान पेंटागन पर गिराया गया। चौथा विमान, जो कांग्रेस की इमारत को लक्ष्य बनाकर उड़ाया जा रहा था, पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया।

परिणाम

इस हमले ने पूरे विश्व को हिला दिया। लगभग 3,000 लोग मारे गए, और यह अमेरिका के लिए एक दिल दहला देने वाला क्षण था।

ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम

आतंकवाद के खिलाफ युद्ध

9/11 के हमलों के बाद, राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने आतंकवाद के खिलाफ “ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम” की शुरुआत की। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य अल-कायदा और तालिबान शासन को समाप्त करना था।

अभियान की सफलताएँ

इस अभियान के परिणामस्वरूप तालिबान को सत्ता से हटाया गया, और अल-कायदा को कमजोर किया गया। अमेरिका ने इस अभियान के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि वह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सक्रिय है।

इराक युद्ध

ऑपरेशन इराकी फ्रीडम

19 मार्च 2003 को अमेरिका ने इराक पर हमला किया, जिसे “ऑपरेशन इराकी फ्रीडम” कहा गया। अमेरिका ने दावा किया कि इराक के पास खतरनाक हथियार हैं, लेकिन बाद में यह साबित हुआ कि ऐसा कुछ नहीं था।

युद्ध का प्रभाव

इस हमले का मुख्य उद्देश्य इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण और वहाँ अपने अनुकूल शासन की स्थापना था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटा दिया गया, लेकिन युद्ध के दौरान कई निर्दोष नागरिकों की भी जान गई।

वैश्विक प्रतिक्रिया

इस युद्ध की व्यापक आलोचना हुई और इसे सैन्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से असफल माना गया।

अमेरिका की महाशक्ति बनने के कारण

सैन्य शक्ति

अमेरिका का रक्षा बजट दुनिया के अधिकांश देशों से अधिक है। पेंटागन ने अपने रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा सैन्य तकनीक और अनुसंधान पर खर्च किया है।

आर्थिक शक्ति

अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है, जिसमें उसकी अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था में 28% योगदान करती है।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों में प्रभाव

अमेरिका प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे IMF, विश्व बैंक, और WTO में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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अमेरिकी वर्चस्व के अवरोध

संस्थागत बनावट

अमेरिका की राजनीतिक प्रणाली में, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, और न्यायपालिका के बीच नियंत्रण की एक प्रणाली है। यह संरचना अमेरिकी वर्चस्व को सीमित करने में मदद कर सकती है।

समाज की उन्मुक्त प्रकृति

अमेरिकी समाज की खुली प्रकृति विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश लगाने में सहायक होती है।

नाटो

उत्तर अटलांटिक ट्रीटी संगठन (नाटो) अमेरिका के वर्चस्व को सीमित कर सकता है।

अमेरिकी वर्चस्व से बचने के उपाय

बैंडवेगन नीति

इस नीति के अंतर्गत, देशों को अमेरिका के वर्चस्व से बचने के लिए उसके साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता होती है।

वैश्विक सहयोग

भारत, चीन, और रूस जैसे देशों के बीच सहयोग बढ़ाने से अमेरिका के वर्चस्व को सीमित किया जा सकता है।

राज्येतर संस्थाएँ

NGO, मीडिया, और जनता का सक्रिय विरोध अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे सकता है।

भारत-अमेरिका संबंध

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

शीत युद्ध के अंत के बाद भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति अपनाई। यह परिवर्तन भारत और अमेरिका के संबंधों को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।

आर्थिक और सामरिक सहयोग

अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। कई अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की यात्रा कर चुके हैं, जो इस संबंध को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।

असैन्य परमाणु समझौता

भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने दोनों देशों के बीच सामरिक संबंधों को मजबूती प्रदान की।

वर्तमान स्थिति

अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियाँ भारत के व्यापारिक हितों पर असर डाल सकती हैं। हालाँकि, दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक, और सैन्य संबंधों में सुधार हो रहा है।

निष्कर्ष

“समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व” पर यह अध्याय हमें अमेरिका की वैश्विक भूमिका और शक्ति के स्रोतों को समझने में मदद करता है। अमेरिका का वर्चस्व न केवल सैन्य और आर्थिक शक्ति से संबंधित है, बल्कि उसकी रणनीतियों, नीतियों, और

अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी निर्भर करता है। यह अध्याय हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि क्या अमेरिकी वर्चस्व लंबे समय तक बना रहेगा या विश्व राजनीति में अन्य शक्तियों का उदय होगा।

यह अध्ययन हमें यह भी याद दिलाता है कि वैश्विक राजनीति एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न देशों के हित और रणनीतियाँ शामिल होती हैं। अमेरिका की वर्चस्ववादी नीतियों को समझना न केवल राजनीतिक विज्ञान के छात्रों के लिए, बल्कि हर नागरिक के लिए आवश्यक है, ताकि वे विश्व में हो रहे परिवर्तनों का सही आकलन कर सकें।

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