Home / JAC 12th Class Notes / Class 12 Home Science Notes / जन पोषण तथा स्वास्थ्य – JAC Class 12 Home Science Chapter 3 Notes

जन पोषण तथा स्वास्थ्य – JAC Class 12 Home Science Chapter 3 Notes

Last updated:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

जन पोषण तथा स्वास्थ्य (Home Science Class 12 Notes): इस अध्याय का उद्देश्य जन पोषण और स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को समझना है। इसमें हम जानेंगे कि कैसे जन स्वास्थ्य पोषण का अध्ययन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होता है और इसे बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं और नीतियों का उपयोग किया जाता है।

TextbookNCERT
ClassClass 12 Notes
SubjectHome Science (गृह विज्ञान)
ChapterChapter 3
Chapter Nameजन पोषण तथा स्वास्थ्य
Categoryकक्षा 12 Home Science नोट्स
Join our WhatsApp & Telegram channel to get instant updates Join WhatsApp &
Telegram Channel
Official WebsiteJAC Portal
जन पोषण तथा स्वास्थ्य –  JAC Class 12 Home Science Chapter 3 Notes

जन स्वास्थ्य पोषण क्या है?

जन स्वास्थ्य पोषण एक ऐसा क्षेत्र है जो स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक पोषण संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयास करता है, बल्कि यह सामूहिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में भी सहायता करता है। इसके अंतर्गत यह समझा जाता है कि समाज के संगठित प्रयासों के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रोगों की रोकथाम करने के लिए कौन से कदम उठाए जा सकते हैं।

जन स्वास्थ्य पोषण के कार्य

जन स्वास्थ्य पोषण का मुख्य कार्य पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करना है। यह निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:

  1. शोध और आंकड़े: जन स्वास्थ्य पोषण के क्षेत्र में शोध और आंकड़ों का संग्रह आवश्यक है, ताकि यह समझा जा सके कि कौन सी समस्याएँ अधिक गंभीर हैं और किस प्रकार के उपाय लागू करने की आवश्यकता है।
  2. नीतियाँ और कार्यक्रम: विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित नीतियाँ बनाना और कार्यक्रम लागू करना।
  3. जन जागरूकता: लोगों को पोषण और स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूक करना, ताकि वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित हों।

जन स्वास्थ्य की संकल्पना

जन स्वास्थ्य की संकल्पना सभी लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा और सुधार के लिए समाज के सामूहिक प्रयासों को दर्शाती है। यह एक व्यापक दृष्टिकोण है, जिसमें समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है। इस संकल्पना का आधार यह है कि स्वस्थ समाज एक स्वस्थ देश का निर्माण करता है।

जन स्वास्थ्य के तत्व

  1. सामाजिक समानता: सभी वर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए।
  2. सामुदायिक भागीदारी: समुदाय को अपने स्वास्थ्य से संबंधित निर्णय लेने में भागीदारी करनी चाहिए।
  3. प्रवर्तन: स्वास्थ्य नीतियों का सही तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।

जन स्वास्थ्य पोषण का लक्ष्य

जन स्वास्थ्य पोषण का लक्ष्य लोगों के लिए अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों की रोकथाम करना है। इसका उद्देश्य पोषण स्तर को सुधारना और इसे अनुकूलतम बनाना है। जब लोगों को संतुलित और पौष्टिक आहार मिलता है, तब उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत बेहतर होती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

कुपोषण (Malnutrition)

कुपोषण वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को उसके शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार पोषक तत्व नहीं मिलते। इसे विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

कुपोषण के प्रकार

  1. अपर्याप्त पोषण: जब किसी व्यक्ति को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा नहीं मिलती है, तो इसे अपर्याप्त पोषण कहा जाता है। यह स्थिति अक्सर आर्थिक कठिनाइयों के कारण उत्पन्न होती है और इससे बच्चे और वयस्क दोनों प्रभावित होते हैं।
  2. असंतुलित पोषण: जब किसी व्यक्ति का आहार पोषक तत्वों की असंतुलित मात्रा से बना होता है, तो इसे असंतुलित पोषण कहा जाता है। यह स्थिति अधिकतर तब होती है जब व्यक्ति स्वस्थ खाद्य पदार्थों का चयन नहीं करता।
  3. अतिपोषण: यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थों का सेवन करता है, खासकर उन खाद्य पदार्थों का जो पोषण में कम होते हैं, जैसे जंक फूड। यह समस्या मोटापे और उससे संबंधित रोगों का कारण बन सकती है।

जन पोषण स्वास्थ्य का महत्व

भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या है, विशेष रूप से 50 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए। निम्नलिखित तथ्य इस समस्या को उजागर करते हैं:

  • भारत में हर तीसरा बच्चा जन्म के समय सामान्य वजन से कम होता है, जो उनकी विकास प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
  • आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों में लगभग आधे बच्चे अल्पपोषण का शिकार होते हैं।
  • बच्चों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, जैसे लोहा, जिंक, विटामिन ए, और फॉलिक अम्ल, आम है।

यदि इन समस्याओं को समय पर नहीं नियंत्रित किया गया, तो यह शारीरिक, मानसिक, और संज्ञानात्मक विकास में बाधा डाल सकती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कुपोषण का दोहरा भार

भारत में कुपोषण का मुद्दा केवल अल्पपोषण तक सीमित नहीं है। यहाँ पर अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों ही समस्याएँ मौजूद हैं। बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता इस समस्या को और बढ़ा रही है।

पोषण संबंधी समस्याएँ

भारत में कई पोषण संबंधी समस्याएँ देखने को मिलती हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण: यह तब होता है जब बच्चे या वयस्क अपनी दैनिक ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते। गंभीर स्थितियों में, इसे मरास्मर या काशिओरकर कहा जाता है।
  2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: आहार में ऊर्जा और प्रोटीन की कमी होने पर, अन्य महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी हो सकती है, जैसे कैल्शियम, आयरन, और विटामिन डी।
  3. लोहे की कमी से एनीमिया: जब शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण कम होता है, तो रक्त में ऑक्सीजन का स्तर गिरता है। यह विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में आम है।
  4. विटामिन ए की कमी: विटामिन ए की कमी से रतौंधी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है।
  5. आयोडीन की कमी: आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि में वृद्धि और मानसिक विकास में कमी हो सकती है।

पोषण समस्याओं का सामना करने के लिए कार्यनीतियाँ

राष्ट्रीय पोषण नीति (1993)

भारत सरकार ने 1993 में राष्ट्रीय पोषण नीति लागू की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कुपोषण की समस्या को कम करना है। यह नीति विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बच्चों, गर्भवती महिलाओं, और दुग्धपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण संबंधी सेवाएँ प्रदान करती है।

भोजन आधारित कार्यनीतियाँ

ये कार्यनीतियाँ पोषणहीनता को कम करने के लिए भोजन को माध्यम के रूप में उपयोग करती हैं। इसके अंतर्गत पोषक तत्वों की कमी को रोकने के लिए संतुलित आहार का सेवन बढ़ावा दिया जाता है।

पोषण आधारित दृष्टिकोण

इस दृष्टिकोण में संवेदनशील समूहों को पोषण पूरक भोजन प्रदान किया जाता है। यह नीति विशेष रूप से विटामिन ए और लोहे की कमी को दूर करने के लिए लागू की जाती है।

देश में चल रहे पोषण कार्यक्रम

  1. एकीकृत बाल विकास योजनाएँ: यह कार्यक्रम बच्चों के समुचित विकास के लिए बनाई गई है।
  2. पोषणहीनता नियंत्रण कार्यक्रम: कुपोषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपाय।
  3. आहार पूरक कार्यक्रम: यह कार्यक्रम बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।

स्वास्थ्य देखभाल

स्वास्थ्य एक मूलभूत अधिकार है, और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराए। भारत में स्वास्थ्य देखभाल को तीन स्तरों पर संचालित किया जाता है:

  1. प्राथमिक स्तर: यह व्यक्ति या परिवार का पहला स्वास्थ्य संपर्क होता है और इसे प्राथमिक सेवा केंद्रों द्वारा प्रदान किया जाता है।
  2. द्वितीय स्तर: यह अधिक जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का निदान जिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा किया जाता है।
  3. तृतीयक स्तर: यह स्वास्थ्य देखभाल का उच्चतम स्तर है, जहाँ जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान किया जाता है। इसमें मेडिकल कॉलेजों के अस्पताल, क्षेत्रीय अस्पताल और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान शामिल हैं।

कार्यक्षेत्र

जन पोषण विशेषज्ञ की भूमिका

जन पोषण विशेषज्ञ, जिन्हें सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ भी कहा जाता है, पोषण स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण निर्धारक होते हैं। वे निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं:

  • अस्पतालों में रोकथाम और शिक्षा के कार्यक्रमों में भाग लेना: विशेषज्ञ अस्पतालों में रोग

ियों को पोषण के बारे में जागरूक करने के लिए कार्य करते हैं।

  • राष्ट्रीय समेकित बाल विकास सेवाओं में भाग लेना: वे बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण की देखभाल में मदद करते हैं।
  • सरकारी स्तर पर परामर्शदाता के रूप में कार्य करना: ये विशेषज्ञ विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों में भाग लेकर स्वास्थ्य नीतियों को लागू करने में मदद करते हैं।
  • स्कूलों में स्वास्थ्य परामर्शदाता के रूप में कार्य करना: बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान देने में मदद करते हैं।

निष्कर्ष

जन पोषण तथा स्वास्थ्य का अध्ययन न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है, बल्कि यह समाज के समग्र स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है। विभिन्न सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से, हम पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं और एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं। यह जरूरी है कि हम सभी मिलकर स्वास्थ्य और पोषण के मुद्दों पर ध्यान दें, ताकि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।


यहाँ प्रस्तुत सामग्री को विस्तार से लिखा गया है, जिससे यह 1,600 शब्दों से अधिक हो गया है। यदि आपको और किसी विशेष विषय पर जानकारी चाहिए या इसमें और भी विस्तार चाहिए, तो मुझे बताएं!

Leave a Comment