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मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र – JAC Class 12 Geography Chapter 1 Notes

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मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र (JAC Class 12 Geography Chapter 1 Notes): इस अध्याय में हम मानव भूगोल के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे। इसमें भूगोल, भौतिक भूगोल, मानव भूगोल, निश्चयवाद, संभववाद, प्रकृति का मानवीकरण, नव निश्चयवाद, और मानव भूगोल के विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं। यह अध्ययन मानव और पर्यावरण के बीच के जटिल संबंधों को समझने में सहायक होगा।

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography (भूगोल )
ChapterChapter 1
Chapter Nameमानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र
Categoryकक्षा 12 Geography नोट्स
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मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र – JAC Class 12 Geography Chapter 1 Notes

भूगोल (Geography)

भूगोल का शाब्दिक अर्थ “पृथ्वी का वर्णन” है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है, जो पृथ्वी के भौतिक और मानव निर्मित विशेषताओं का गहन अध्ययन करता है। भूगोल को ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की जननी माना जाता है और इसमें मुख्य रूप से दो शाखाएँ शामिल हैं: भौतिक भूगोल और मानव भूगोल।

भूगोल की शाखाएँ

  1. भौतिक भूगोल:
  • यह पृथ्वी के भौतिक स्वरूपों का अध्ययन करता है, जैसे कि जलवायु, भू-आकृति, और पारिस्थितिकी।
  • भौतिक भूगोल प्राकृतिक घटनाओं के वितरण, उनके कारणों और प्रभावों को समझने में सहायक होता है।
  1. मानव भूगोल:
  • यह मानव और उसके पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है।
  • मानव भूगोल सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।

मानव भूगोल का अध्ययन

मानव भूगोल, भौतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के बीच के अंतर्संबंधों का विश्लेषण करता है। यह अध्ययन 19वीं सदी के अंत में चार्ल्स डार्विन की “Origin of Species” के प्रकाशन के साथ विशेष रूप से विकसित हुआ। मानव भूगोल का अध्ययन हमारे समाज के विकास, संसाधनों के उपयोग, और विभिन्न सामाजिक संरचनाओं की समझ में सहायक होता है।

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रैटजेल का दृष्टिकोण

रैटजेल, जिन्हें आधुनिक मानव भूगोल का जनक माना जाता है, ने अपनी पुस्तक “Anthropgeographies” में कहा है कि मानव को जीवित रहने के लिए अपने वातावरण से सहयोग प्राप्त करना अनिवार्य है। उनके अनुसार, मानव भूगोल का मुख्य उद्देश्य मानव गतिविधियों और पर्यावरण के बीच के संबंधों को समझना है।

ऐलेन सी. सैप्पल का दृष्टिकोण

ऐलेन सी. सैप्पल ने बताया कि मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण से संसाधनों का उपयोग करके गांवों, शहरों, और परिवहन नेटवर्क को विकसित करता है। उनका मानना है कि मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और मानव के बीच बदलते रिश्तों का बोध कराता है।

मानव भूगोल का इतिहास

मानव भूगोल का उद्भव मानवों और पर्यावरण के बीच के परस्पर क्रियाकलापों से हुआ। खोज की उम्र से पहले समाजों के बीच बातचीत की कमी थी, लेकिन 15वीं सदी के अंत में यात्राओं और अन्वेषणों ने मानव भूगोल के क्षेत्र का विस्तार किया। इस समय के दौरान, विभिन्न संस्कृतियों और समाजों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।

मानव भूगोल के क्षेत्र और उप-क्षेत्र

मानव भूगोल एक अंतर-शाखीय अध्ययन है, जो सामाजिक विज्ञानों के अन्य क्षेत्रों से जुड़ा है। इसके विभिन्न क्षेत्र और उप-क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

प्रमुख अध्ययन क्षेत्र:

  • सांस्कृतिक भूगोल: यह संस्कृति और उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है, जैसे भाषा, धर्म, और परंपराएँ।
  • सामाजिक भूगोल: यह सामाजिक संरचनाओं, समूहों, और उनके स्थानिक वितरण का अध्ययन करता है।
  • नगरीय भूगोल: यह शहरी क्षेत्रों के विकास, नियोजन, और समस्याओं का अध्ययन करता है।
  • जनसंख्या भूगोल: यह जनसंख्या के वितरण, घनत्व, और विकास के पैटर्न का अध्ययन करता है।
  • राजनीतिक भूगोल: यह राजनीतिक प्रक्रियाओं और भू-राजनीतिक संरचनाओं का अध्ययन करता है।
  • आवास भूगोल: यह मानव निवास के स्थान, स्वरूप, और उनके विकास का अध्ययन करता है।
  • आर्थिक भूगोल: यह आर्थिक गतिविधियों के स्थान और उनके प्रभावों का अध्ययन करता है।
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प्रमुख उपक्षेत्र:

  • व्यवहारवादी भूगोल: यह मानव व्यवहार और उसके पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक कल्याण का भूगोल: यह समाज के कल्याण के पहलुओं का अध्ययन करता है।
  • संस्कृतिक भूगोल: यह संस्कृति और उसके भूगोल के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है।
  • ऐतिहासिक भूगोल: यह भूगोल के ऐतिहासिक विकास और परिवर्तन का अध्ययन करता है।
  • चिकित्सा भूगोल: यह स्वास्थ्य और रोग के भूगोल का अध्ययन करता है।
  • लिंग भूगोल: यह लिंग आधारित अध्ययन और उसके भूगोल के पहलुओं का अध्ययन करता है।

मानव भूगोल की विचारधाराएँ

मानव भूगोल की मुख्य तीन विचारधाराएँ हैं:

  1. नियतिवाद (Determinism):
  • इस सिद्धांत के अनुसार, मानव गतिविधियाँ पर्यावरण द्वारा नियंत्रित होती हैं।
  • उदाहरण के लिए, आदिवासियों की प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता।
  1. संभववाद (Possibilism):
  • यह विचारधारा यह मानती है कि मनुष्य अपने पर्यावरण में परिवर्तन कर सकता है और प्राकृतिक संसाधनों का इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य की क्रियाएँ और निर्णय उसके वातावरण पर निर्भर करते हैं।
  1. नव निश्चयवाद (Neo-Determinism):
  • यह सिद्धांत रैटजेल और संभववाद के बीच का संतुलन प्रस्तुत करता है।
  • इसके अनुसार, मानव को प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए ही प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहिए।

मानवतावादी विचारधारा

मानवतावादी विचारधारा का उद्देश्य मानव भूगोल को मानव कल्याण और सामाजिक चेतना के विभिन्न पहलुओं से जोड़ना है। 1970 के दशक में उभरी इस विचारधारा में आवास, स्वास्थ्य, और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह विचारधारा मानव की केंद्रीय भूमिका और उसके सामाजिक विकास पर जोर देती है।

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पर्यावरणीय निश्चयवाद

यह विचारधारा मानव के प्रारंभिक जीवन के संबंध में है, जहाँ मनुष्य ने अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाला। इसे पर्यावरणीय निश्चयवाद कहा जाता है, जो मानव और प्रकृति के बीच संबंध को दर्शाता है।

नव निश्चयवाद की विशेषताएँ

नव निश्चयवाद, पर्यावरणीय निश्चयवाद और संभववाद के बीच एक मध्य मार्ग प्रस्तुत करता है। यह विचार इस बात पर बल देता है कि मनुष्य न तो पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर हो सकता है और न ही स्वतंत्रता की अवस्था में रह सकता है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है:

  • संतुलन: यह विचारधारा संतुलन पर जोर देती है। मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए।
  • समस्या समाधान: नव निश्चयवाद के अनुसार, मानव को प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए।

निष्कर्ष

इस अध्याय के माध्यम से हमने मानव भूगोल, उसके विभिन्न क्षेत्र, उपक्षेत्र, विचारधाराएँ, और मानव-पर्यावरण संबंधों का विस्तृत अध्ययन किया। मानव भूगोल न केवल हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को समझने में मदद करता है, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी स्पष्ट करता है। हमें यह समझना होगा कि मानव गतिविधियाँ पर्यावरण पर प्रभाव डालती हैं, और इस संबंध को समझना अत्यंत आवश्यक है।

मानव भूगोल का अध्ययन हमें यह सिखाता है कि हम किस तरह से अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रह सकते हैं और इसे स्थायी रूप से विकसित कर सकते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि हम अपने भूगोल को समझें और इसके अनुसार अपने कार्यों और नीतियों का निर्धारण करें।

इस प्रकार, मानव भूगोल का अध्ययन न केवल शैक्षिक महत्व रखता है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन और सामाजिक विकास के लिए भी अनिवार्य है। हमें चाहिए कि हम इस ज्ञान का उपयोग करके एक बेहतर और संतुलित समाज का निर्माण करें।

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